मुद्राराक्षस संतोला | Mudrarakshas Santola

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सफ़ेद कपड़ों की सफ़ेदी बनाए रखने की चिन्ता खाती रही है। मध्यवित्तवर्ग ने ही अक्सर खानदान की इज्जत के नाम पर आत्स- हृत्याएँ कीं और इसी वर्ग ने खद दूसरे मनुष्य को ही नहीं अपने निकटस्थ को भी अक्सर पहचानने से इनकार किया । उसके आचरण में एक गहरी यान्त्रिकता आई और वह ज्यादा से उयादा अमानुषिक होता गया । उसकी इस अमानुषिकता के पीछे उसका वह आधिक-सामाजिक परिवेश रहा है जिसमें जीने को वह बाध्य हुआ या जिसमें जीने का फैसला कभी उसने खद ही किया था । इस मध्यवर्ग के सदस्यों की दो कोटियाँ हैं : एक कोटि वह जिसमें ऐसे लोग हैं जो छोटे या बड़े नगरों में ही पीढ़ी-दर- पीढ़ी रहते आए और वर्तमान समय तक आते-आते आर्थिक दृष्टि से इस वर्ग में सिमट रहे और दूसरी कोर्टि वहू जिसमें गाँवों की ओर से नगरों में आए बहुत-से लोगों में से कुछ सफेदपोश हो गए । इन दोनों ने ही कुलशील संबंधी झूठ का बहुत बड़ा सहारा लिया । दोनों को ही यह मानना शर्मि- न्दगी का कारण लगता रहा है कि उनके पिता या पितामह विपन्नथे या देहाती थे। मध्यवर्ग के बीच ही अपनी तुलनात्मक श्रेष्ठता का ए सास एक ओर बड़ी कुण्ठा रहा है। अपने अत्यन्त सीमित आर्थिक साधनों के बावजूद अपनी सम्पन्नता का जो ढोंग इस वर्ग के आदमी को करना पडा है उसने इसके जीवन को विपन्न से विपन्नतर बनाया है । इस्जतदार होने ओर अच्छा खाते-पीते हने कौ चाहत ने उसके रहन-सहन में हास्या- स्पद नकलीपन भरा । विपन्न रहन-सहन के कुछ ओर मनोवैज्ञानिक दबाव भी पैदा हुए । मध्यवित्तवर्ग के अधिकांश को तंग मकानों और अक्सर एक-एक कमरे में समूचे परिवार के साथ गुजर करना पडा रोजी के सिलसिले सं पारि- वारिक इकाइयां बुरी तरह ट्टी । अक्सर पति को पत्नी और बच्चों तक से अलग सैकड़ों मील दर के शहर में दिन गुज्ञारना पड़ा । ऐसे परिवारों के बच्चो का मनोविज्ञान तो बदला ही खद स्त्री-पुरुषों का मनोविज्ञान भी बदला । मर्यादाओं ओर मूल्यों के साथ गहराई से चिपटे होने के बावजूद सैतिक भूल्य ओर मर्यादां खण्डित हुई । पातिव्रत धमे या एकपत्नीव्रत १५




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