महामना मदन मोहन मालवीय के सामाजिक और राजनीतिक विचार | Mahamana Madan Mohan Malaviya Ke Samajik Aur Rajanitik Vichar

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Mahamana Madan Mohan Malaviya Ke Samajik Aur Rajanitik Vichar by विजय कुमार - Vijay Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शारीरिक, बौद्धिक तथा भावात्मक शक्तियों को परिपुष्ठ कर ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह कर सकें, वे कलापूर्ण और सौंदर्यमय जीवन व्यतीत कर सकें, समाज में आदरणीय ओर विश्वासपात्र 'बन सके तथा देशभक्ति से, जो मनुष्य को उच्च कोटि की सेवा करने की ओर प्रवृत्त करती है, अपने सीदन को अलंकृत कर राष् की समुचित सेवा कर सके | मालवीय जी माध्यमिक स्तर तक निःशुल्क ओर अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि सभी स्तर पर शिक्षा का प्रबन्ध ऐसा हो कि कोई बालक निर्धऩ होने के कारण शिक्षा से वंचित न रह्‌.पाये, क्योक्रि गरीबों की सुख शान्ति बहुत हद तक शिक्षा पर निर्भर है। इसके जरिये ही वे विवेक और आत्मसम्मान का स्वभाव प्राप्त कर सकते है । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रारम्भ से ही हरिजन विद्यार्थियों के लिए शिक्षा निःशुल्क कर दी धी। मालवीय जी स्त्री - शिक्षा के प्रबल समर्थक धे। उनका कहना था कि पुरुषों कौ शिक्षा से स्त्रियो की शिक्षा अधिक महत्वपूर्णं है, क्योकि वे भारत के भावी सन्तानो की माताएं है । वे भावी राजनीतिज्ञ, विद्वान, तत्वज्ञानियोँ, व्यापार, तथा कलाकौशल के नेताओं आदि की प्रथम शिक्षिकाए हैं। वे स्त्री-शिक्षा का प्रबन्ध इस प्रकार चाहते थे कि प्राचीन तथा नवीन सभ्यताओं के सभी सदणुणों का समन्वय हो और वे अपनी शिक्षा द्वारा भावी भारत के पुनर्निर्माण में पुरूषों से पूर्ण रूप से सहयोण कर सके। मालवीय जी मानव के सर्वाणीण विकास तथा उत्कृष्ट एवं आनन्दमय जीवन के लिए विकासोन्दुख शिक्षा तथा चरित्र-गठन के साथ-साथ स्वस्थ, निर्मल जीवन, ज्ञान-विज्ञान का विस्तार, ललित कलाओं के प्रति अभिरुचि तथा सुख साधन की भौतिक सुविधाओं को भी आवश्यक समझते थे । स्वास्थ्य की रक्षा तथा शक्ति के विकास के लिए वे 25 वर्ष तक अर्च्य का पालन तथा नियमित व्यायाम आवश्यक मानते थे | उनके विचार में व्यायाम तथा क्रीड़ा के प्राचीन ओर अर्वाचीन साधन [15]




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