मधु - मक्खी | Madhu Makkhi

Madhu Makkhi by श्री नारायणप्रसाद अरोड़ा - Shri Narayana Prasad Arora

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) जाग्रति शहद की मक्खियों में सब ही झंडे देने वाली नहीं होतीं । 'ंडे देने वाली मक्‍्खी को “रानी मक्खी कहते हैं । रानी सदा च्रंडे नहीं देती । तीन-चार मास श्राराम करने के पश्चात जनवरी से वह्‌ 'ंडे देना झारम्भ करती है) रानी-मक्खी अंडे देती जाती है और अन्य मक्खियाँ उन्हे सेती है । इकीस दिन में छ्ंडेसे “'मज़दूर-मक्खी ” ( गल ए€€ ) बनं जाती है | श्रंडा देने के पश्चात्‌ दत्ते की हर एक कोटरी का सुँह मोम से बन्द कर दिया जाता ३। मक्खा दुह काम नहीं करता । वह सदा बेकार रहता है। सारा काम मक्खियाँ ही करती हैं । वे चार चीज़ें जमा करती हैं--शहद, मोम, पराग और पानी । मक्खियों को धूप बड़ी प्रिय है । धूप देखकर वे शीघ्र अपने छतों से बाहर निकल 'झाती हैं। जहाँ मक्खियों का छत्ता होता हैं उस स्थान के झास-पांस के बागर-बगीचीं में फल-फूल खूब पैदा होते हैं। कभी-कभी मक्खियाँ लकड़ी के बुरादे को पराग समम कर उठा ले जाती हैं । उन्हें सफ़ाई बहुत पसन्द हैं । वे छापने घर में दुग्ध नहीं रहने देतीं । यदि छत्ते में कोई मक्खी मर जाती है तो वह फ़ोरन निकाल कर दूर फक दी जाती है । बे बडे उत्साह से काम करती हैं । उनका काम बड़ा चौकसं होता है । उनमें प्रजातन्त्र राज्य होता दै । सघको कुल न ऊढ काम




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