मधु - मक्खी | Madhu Makkhi
श्रेणी : कृषि, तकनीक व कंप्यूटर / Computer - Technology
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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No Information available about श्री नारायणप्रसाद अरोड़ा - Shri Narayana Prasad Arora
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
जाग्रति
शहद की मक्खियों में सब ही झंडे देने वाली नहीं होतीं ।
'ंडे देने वाली मक््खी को “रानी मक्खी कहते हैं । रानी
सदा च्रंडे नहीं देती । तीन-चार मास श्राराम करने के पश्चात
जनवरी से वह् 'ंडे देना झारम्भ करती है) रानी-मक्खी अंडे
देती जाती है और अन्य मक्खियाँ उन्हे सेती है । इकीस दिन में
छ्ंडेसे “'मज़दूर-मक्खी ” ( गल ए€€ ) बनं जाती है | श्रंडा
देने के पश्चात् दत्ते की हर एक कोटरी का सुँह मोम से बन्द
कर दिया जाता ३। मक्खा दुह काम नहीं करता । वह सदा
बेकार रहता है। सारा काम मक्खियाँ ही करती हैं । वे चार
चीज़ें जमा करती हैं--शहद, मोम, पराग और पानी ।
मक्खियों को धूप बड़ी प्रिय है । धूप देखकर वे शीघ्र अपने छतों
से बाहर निकल 'झाती हैं। जहाँ मक्खियों का छत्ता होता हैं
उस स्थान के झास-पांस के बागर-बगीचीं में फल-फूल खूब पैदा
होते हैं। कभी-कभी मक्खियाँ लकड़ी के बुरादे को पराग समम
कर उठा ले जाती हैं ।
उन्हें सफ़ाई बहुत पसन्द हैं । वे छापने घर में दुग्ध नहीं
रहने देतीं । यदि छत्ते में कोई मक्खी मर जाती है तो वह फ़ोरन
निकाल कर दूर फक दी जाती है ।
बे बडे उत्साह से काम करती हैं । उनका काम बड़ा चौकसं
होता है । उनमें प्रजातन्त्र राज्य होता दै । सघको कुल न ऊढ काम
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