भक्त - कवि व्यास जी | Bhakt-kavi Vyas Ji

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Bhakt-kavi Vyas Ji by वासुदेव गोस्वामी - Vasudev Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( च 2 हरित्रयी-- पं ७५, ५ शत ॥ वृ दावन में स्थायी रूप से रहने पर प्यास जी की दिनचयां के मुख्य कायं प्रपने ्राराध्य युगल किशोर जी की सखी मावसे श्रचेना करना, भक्तों की सेवा करना ओरौर ब्रज-रस का वर्णुन करना था । इस कार्यक्रम की पूर्ति के लिए, उनके सहयोगी ग्रोर सदायकों मे दित हरिवंश शौर हरिदास स्वामी मुख्य ये | वृ दावन के इन तीनों भक्त कवियों के पारस्परिक सदार्द रौर समान विश्वास के कारण अनेक कवियों रौर लेखकों ने उनका साथ-साथ नामोल्लेख किया है । हरिव श, हरिदास रौर हरिराम व्यास के नामों के श्मारमिक शब्द “हरि” को लेकर इस ग्र थ के लेखक ने हरित्रयी? की एक मौलिक कल्पना की है । सूरदासादि वल्लम संप्रदायी ओ सुप्रसिद्ध कीतंनकारों की मंडली श्ऋलापः के नाम से प्रसिद्ध है । इ'दावन के श्रनन्य रसिकं की यह दूसरी मंडली चाहें ऋ्रष्टछाप के समान सुब्यवस्थित न रही हो; किंतु श्रपनी धार्मिक मान्यता, उपासना-पद्धति शरोर रहन-सहन की समानता के कारण उसे भी एक मंडली के रूप मे सममना सव्या उचित ही है । रसोपासक श्रनन्य रसिको की इस मंडली को 'रसिकत्रयी” भी कहा जय सकता है । व्यास जी का महदत्व-- व्यास जी श्रपने समय के परम भक्त, सिद्ध महाता श्रौर सवस त्यागी महानुमाव ये | शुद्र नारि, घर संपति नासी | मूड सुडाद भये संन्यासी--की लोकोक्ति के विरुद वे श्रपने कट ब-परिवार, पुत्र-कलत्र, राजकीय प्रतिष्ठा शरोर विपुल धन-वैमव का परित्याग कर एक निर्धन भिल्लुक की तरह वृ दावने आकर रहने लगे थे । फिर ओरछा-नरेश महाराज मधुकर शाह के स्वयं आग्रह करने पर भी श्रोरछा वापिस नहीं गये । सांसारिक प्रलोगनों से सबंथा मुक्त होकर विरक्त भाव से जीवन व्यतीत करना कोई साधारण बात नहीं है । इस प्रकार का श्राचरणु व्यात जी जेसे विरले ही संत-महात्माश्रों से संभव है । इससे व्यास जी का महत्व स्वयंसिद्ध है; किंतु त्यागपूर्ण जीवम श्रौर मक्ति-मावना से भी अधिक उनके महत्व का कारण उनकी श्रमर “वाणी” है । मक्त-कवि शनीलसखीः ने व्यास-वाणी की वंदना करते हुए इसके यथार्थ स्वरूप का कथन किया है । उन्होंने इसे लोक-वेद के भेदो से प्रथक्‌ और विधि-निषेध का नाश करने वाली बतलाया है । उन्होंने इस “वाणी” को विमुख- मंजन के लिए श्रमोध शक्ति कहा है, श्रौर श्रनन्य रसिकों के लिए सुख-संतोषप्रद बतलाया हे+ । “व्यास-वाणी” मैं जहाँ ज के मक्त कवियों की माति राधाकृष्ण की केलि- क्रीड़ाइओं का रसपूर्ण वर्णन हुआ है, वदँ संत कवियों की तरह श्रवुभव जन्य लोकोप- देश भी दिया गया है । भक्तो कौ साधना प्रायः अंतमु खी होती है, इसलिए भक्ति- क द्वितीय खंड के श्रारभ में व्यास.वाणी की महिमा? › पुष्ट १६०




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