भक्त - कवि व्यास जी | Bhakt-kavi Vyas Ji
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
58 MB
कुल पष्ठ :
461
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( च 2
हरित्रयी-- पं ७५, ५ शत ॥
वृ दावन में स्थायी रूप से रहने पर प्यास जी की दिनचयां के मुख्य कायं
प्रपने ्राराध्य युगल किशोर जी की सखी मावसे श्रचेना करना, भक्तों की सेवा
करना ओरौर ब्रज-रस का वर्णुन करना था । इस कार्यक्रम की पूर्ति के लिए, उनके सहयोगी
ग्रोर सदायकों मे दित हरिवंश शौर हरिदास स्वामी मुख्य ये | वृ दावन के इन तीनों
भक्त कवियों के पारस्परिक सदार्द रौर समान विश्वास के कारण अनेक कवियों रौर
लेखकों ने उनका साथ-साथ नामोल्लेख किया है । हरिव श, हरिदास रौर हरिराम
व्यास के नामों के श्मारमिक शब्द “हरि” को लेकर इस ग्र थ के लेखक ने हरित्रयी?
की एक मौलिक कल्पना की है । सूरदासादि वल्लम संप्रदायी ओ सुप्रसिद्ध कीतंनकारों
की मंडली श्ऋलापः के नाम से प्रसिद्ध है । इ'दावन के श्रनन्य रसिकं की यह दूसरी
मंडली चाहें ऋ्रष्टछाप के समान सुब्यवस्थित न रही हो; किंतु श्रपनी धार्मिक मान्यता,
उपासना-पद्धति शरोर रहन-सहन की समानता के कारण उसे भी एक मंडली के रूप
मे सममना सव्या उचित ही है । रसोपासक श्रनन्य रसिको की इस मंडली को
'रसिकत्रयी” भी कहा जय सकता है ।
व्यास जी का महदत्व--
व्यास जी श्रपने समय के परम भक्त, सिद्ध महाता श्रौर सवस त्यागी
महानुमाव ये | शुद्र नारि, घर संपति नासी | मूड सुडाद भये संन्यासी--की
लोकोक्ति के विरुद वे श्रपने कट ब-परिवार, पुत्र-कलत्र, राजकीय प्रतिष्ठा शरोर विपुल
धन-वैमव का परित्याग कर एक निर्धन भिल्लुक की तरह वृ दावने आकर रहने
लगे थे । फिर ओरछा-नरेश महाराज मधुकर शाह के स्वयं आग्रह करने पर भी
श्रोरछा वापिस नहीं गये । सांसारिक प्रलोगनों से सबंथा मुक्त होकर विरक्त भाव से
जीवन व्यतीत करना कोई साधारण बात नहीं है । इस प्रकार का श्राचरणु व्यात जी
जेसे विरले ही संत-महात्माश्रों से संभव है । इससे व्यास जी का महत्व स्वयंसिद्ध है;
किंतु त्यागपूर्ण जीवम श्रौर मक्ति-मावना से भी अधिक उनके महत्व का कारण
उनकी श्रमर “वाणी” है । मक्त-कवि शनीलसखीः ने व्यास-वाणी की वंदना करते हुए
इसके यथार्थ स्वरूप का कथन किया है । उन्होंने इसे लोक-वेद के भेदो से प्रथक्
और विधि-निषेध का नाश करने वाली बतलाया है । उन्होंने इस “वाणी” को विमुख-
मंजन के लिए श्रमोध शक्ति कहा है, श्रौर श्रनन्य रसिकों के लिए सुख-संतोषप्रद
बतलाया हे+ ।
“व्यास-वाणी” मैं जहाँ ज के मक्त कवियों की माति राधाकृष्ण की केलि-
क्रीड़ाइओं का रसपूर्ण वर्णन हुआ है, वदँ संत कवियों की तरह श्रवुभव जन्य लोकोप-
देश भी दिया गया है । भक्तो कौ साधना प्रायः अंतमु खी होती है, इसलिए भक्ति-
क द्वितीय खंड के श्रारभ में व्यास.वाणी की महिमा? › पुष्ट १६०
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