भारतेन्दु के निबंध | Bharatendu Ke Niband

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Bharatendu Ke Niband by केसरीनारायण शुल्क - Kesarinarayan Shulk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) पुराद्रतत-सग्रहः मे मी प्रशस्ति, पुराने शिलालेख श्रादि की एेतिहासिक सामभ्री का विवेचन किया गया है । इसी में “झकबर और ओऔरंगजेब' नामक लेख भी है जो बड़ा मनोरजक है । भारतेंदु की इतिहास विषयक रुचि के निदर्शन में इन पुष्तको' का नाम प्रायः लिया जाता है । वास्तव मे ये इतिहास-अ्रथ न होकर इतिहास के ढॉचे हैं जिनमे उसकी स्थूल रूपरेखा मात्र दी गई है । श्रधिकाश मै केवल वशपरपरा, राज्यारोइण तथा देहावसान का समयचक्र दिया है । कुछ में राजाओं का इृत्तांत भी है, जिसका आधार परपरा और जनश्रुति है और जिसका उल्लेख बिना किसी शोध या छानबीन के कर दिया गया है । लेखक में श्रसाधारण तथा श्रश्च्यजनक इत्तातो के उल्लेख की रुचि विशेष रूप से लक्षित होदी है । ये ऐतिहासिक निबंध न तो अत्यत विस्तृत हैं शोर न ये इतिहास लेखन के उत्कृष्टतम उदाहस्ण ही कहे जा सकते हैं । फिर भी इनका मह है, और यह महर उनकी पूशंता मे न होकर नवीन प्रयास श्र नई परपरा के प्रवर्तन मै है । ये निवध देश के श्रतीत के प्रति जनशचि और उत्सुकता जगाने के लिये लिखे गए थे जिसे देशवासी श्रपनी प्राचीन गोरव-गाथा का स्मरण कर श्रपनी बरत॑मान द्यनीय दशा परं श्रो बहा शरोर श्रपनी उन्नति का उपाय सोचें । शिक्षात्मक महस के साथ इनका महस्व इस बात मैं भी है कि इनसे भारतेदु की ऐतिहासिक भावना का पता लगता है, जो कि उन्नीसवी शताब्दी की प्रचलित श्रौर मान्य एतिहासिक भावना कै मेल मे है । उन्नीसवी शताब्दी की ऐतिहासिक भावना श्राज्ञ की भाति वर्गंप्रधान न होकर व्यक्तिप्रधान थी । किसी राजा के जन्म, राजतिलक, उसके युद्ध, जय पराजय तथा उसके श्रसाधारण्‌ कृत्यो ओर उससे सबधित घटनाओ के कालक्रमानुसार वणन मे दी इतिहास की इतिश्री समी जातीथी । इसी से उस युग के इतिहास-लेखर्को' की तरह भारतैदु ने भी राजाशओओ की बंशावली दी है, उनका राज्यकाल बताया है शरीर कतिपय प्रमुख घटनाओ तक अपने को सीमित रखा दै । इन राजनीतिक घटनाओं का सामाजिक श्रवस्था श्र युग की श्रन्य प्रदृत्तियो से कया संबंध था, इसकी श्रोर न उस समय के इतिहासकारों का ध्यान था श्र न भारतेंदु का ही । दूसरे शब्दों मे, ऐतिहासिक भावना की जो दुर्बलता या कमी हमे दिखाई पड़ती है वह भारतेदु की व्यक्तिगत दुर्बलता नहीं है, प्रव्युत उस शताब्दी की सीमित' परिधि के परिणामस्वरूप हैं जिसका झ्तिक्रमण' लेखक न कर सका । भारतेडु ने इतिहास को हिदू की दृष्टि से भी देखा श्र श्रॉँका है, सुललमानी राज्य के प्रति मार्मिक श्रौर कटु व्यग करने से कसर नहीं' रखी । निम्नलिखित: कथन इसका सकेत दे रहा दै--




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