ख़ैयाम की मधुशाला | Khaiyam Ki Madhushala

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Khaiyam Ki Madhushala by डॉ बच्चन सिंह - Dr. Bachchan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) कि अमुकं रानिवार को श्रीयत शिवनाथ कटजू रुबाइयात उमर खेयाम पर अपना लेख सुनाएंगे । श्रीयुत _ दिवनाथ कटज्‌ प्रयाग के प्रसिद्ध एेडवोकेट डा० केलाशनाथ कटजू के सुपुत्र हं । उस समय आप मेरे सहपाठी थे । शिवनाथ जी के लेख को समभने के 'छिए ही मंने रुबाइयात उमर खेयाम को पढ़ने की. जल्दी की । रुबाइयात में जो कुछ पाने को आदा मेंने की थी वही मुककको मिली । रुबाइयात पढ़कर मुभ्के ऐसा लगा जंसे मेरे हृदय मं एक वृक्ष उग आया जिसके बीज उससे सात-आठ साल पहले पड़ चुके थे । शिव जी--हम क्लास में उन्हें इसी नाम से पुकारते थे--के लेख ने इस वृक्ष में पहले पानी का काम किया । रुवाइयात उमर खेयाम के उस पहले पाठ से ही म॑ने उसका रूपांतर करना आरंभ किया या अगर मं अधिक सच्चाई से काम लूँ तो कहूँगा कि उस प्रथम पाठ से ही मेरे मन मं उसका अनुवाद होना शुरू हुआ । यह एक स्वाभाविक बात हुं कि जव हम किसी अन्य भाषा को सीखना आरंभ करते हूं तो जो कुछ हम उसमें पढ़ते हूं उसे समभनें को हम मन ही मन अपनी भाषा में उसका अनुवाद करते जाते हें। एफ० ए० पास करके बी० ए० में पहुँचा, बी० ए० पास करके एम० ए० मं; बहुत कुछ पढ़ना था, यदा कदा रुबाइ- यात पर भी नजर दौड़ा ली, पर अभी तक उमर खंयाम' की कविता का मेरा ज्ञान केवल शाब्दिक था । कविता का अथं म जानताथा परंतु किसी कविता के अथं को समभ लेना उसे समभने के कायं का सब से सरल भाग हे । दाब्दों




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