प्रसाद - दर्शन | Prasad - Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ द्वारिकाप्रसाद सक्सेना - Dr. Dwarika Prasad Saksena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नयस प्रकरण
प्रसाद के दाशं निकं विचारों को पृष्ठभूमि
प्रसाद का युग और उनका व्यक्तित्व
श्री जयशंकर प्रसाद एक उच्चकोटि के कवि, विचारक एवं दादालिक थे ।
उनकी कला-कृतियों में काव्य एवं दन का अद्भूत सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है)
प्रसाद की काव्य-कला में जहाँ भावों की प्रौढता, कला की उत्कृष्टता एवं गहन
अध्ययनशीलता के दन होते हैं, वहाँ प्रसाद की दारन॑निकता में भी जीवनानुभुति की
गहनता, विचारो की गूढता एवं गहन चितनशीलता विद्यमान है । प्रसाद-काव्य में
कला और दशंन का मणि-कांचन संयोग हुआ है, किन्तु प्रसाद की कुछ कला-कृतियाँ
उनके गूढ़ दाशेनिकं विचारों से इतनी अधिक आक्रान्तो गई हैँ कि साधारण पाठक
उनमें प्रवेश करने तक का साहस नहीं करता ओर विचारोकी प्रौढता एवं दुरूहता
के कारणं उन्हं क्लिष्ट समकर छोड़ देता है । अब प्रदन यह उठता है कि अत्यन्त
सरस एवं आह्वादकारिणी रचना प्रस्तुत करने वाले महाक्तवि प्रसाद दा्ननिक कंसे
हो गये ? उनको दाशंनिक मनोवृत्ति केसे उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होती चली गई
अथवा वे कौन से प्रेरक तत्व हैं, जिन्होंने प्रसाद की दाञेनिक प्रतरृत्ति को उद्बुद्ध करके
उन्हें कवि से दादनिक बना दिया ? इन प्रदनों का कोई एक सीधा एवं सरल उत्तर
देना सवंथा कठिन है, क्योकि प्रसाद को दादांनिकता कीओर उन्मुख करने वाली
अनेक प्रेरक शक्त्यां हो सकती हैँ । परन्तु सामान्य दृष्टि से विचार करने पर यह
ज्ञात होता है कि प्रसाद को दर्शन की ओर प्रेरित करने में सबसे अधिक उनके युग
की विचारधारा और उनके व्यक्तित्व का हाथ रहा है ।
(क) युग को विचारधारा
ब्ह्म-समाज--प्रसाद का युग नव-जागरण का युग था । उस समय ईसा की
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध से हो भारतीय जीवन के सभी क्षेत्रों में जागृति की धूम
मची हुई थी । सर्वत्र जीवन को उन्नत एवं उत्कृष्ट वनाने का प्रयत्न हो रहा था ।
अग्रजो के सम्पकमे आने के कारण भारत नित्य नये-नये विचारों एवं आविष्कारों
से अवगत होता चला जा रहा था और अपने सर्वागीण विकास के पथ पर अग्रसर
हो रहा था । इसी कारण यदि एक ओर भारतीय मस्तिष्क विज्ञान का सहारा लेकर
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