चिरकुमार - सभा | Chirakumar Sabha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिरकुमार-सभा । द
% ४. ५.
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यहा यह कह देना उचित होगा कि अक्षयकुमार उमङ्खगमे आकर
गीतके दो चार पद अपने आप बना कर गा सकते थे, पर कभी कोई
गीत पूरा नहीं करते थे । उनके मित्र अधीर होकर कहते थ--इतनी
असाधारण क्षमता होनेपर भी तुम गीत समाप्त कयो नहीं करते ?
अक्षय झट तानमं उसका जवाब देते--
क्या समाप्त करनेसे भाई, कभी हुआ कल्याण 1
ते न जलने पायेगा, मे कर दंगा दीपक निवोण ।
इस प्रकारके व्यवहारसे सब लोग ऊवकर कहते हैं कि अक्षयसे
किसी तरह पेश नहीं पाया जा सकता |
पुरबालाने भी खीझकर कहा--उस्तादजी, जरा ठहरिये ! मेरा
प्रस्ताव यह है कि दिनमें एक समय ऐसा निश्चित करो कि जब तुम
परिहास नहीं करने पाओगे--जिस समय तुम्हारे साथ दो एक कामकी
बाते दो सकेगी ।
अक्षय--गरीबका लड़का हूँ, इस छिये स््रीको अपनी बात कहनेकी
आज्ञा देनेका साहस नहीं कर सकता । डर लगता है कि कहीं झट बाज;
बंद न मॉग बैठे ! ( फिर गाता है । ))
कहीं वह मोग न बैठे मन,
इसीसे लेता हूँ मन खींच;
कीं रम बेटे ओखोम-
सखी लेता हूँ, आँखें मीच ।
पुरबाछा--अच्छा, तब जाओ |
अक्षय---नहीं, नहीं, रूठो मत | अच्छा कहो, क्या कहती हो,
सब सूनूगा । टिस्टमें नाम लिखाकर तुम्हारी परिहास-निवारिणी सभाका
सदस्य बनूँगा । तुम्हारे सामने कभी किसी किस्मकी बेअदबी नहीं
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