चिरकुमार - सभा | Chirakumar Sabha

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Chirakumar Sabha by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिरकुमार-सभा । द % ४. ५. ^ ^ ^ १ ^~ ^^ ~^ ^~ ~ ^^ ~~~ यहा यह कह देना उचित होगा कि अक्षयकुमार उमङ्खगमे आकर गीतके दो चार पद अपने आप बना कर गा सकते थे, पर कभी कोई गीत पूरा नहीं करते थे । उनके मित्र अधीर होकर कहते थ--इतनी असाधारण क्षमता होनेपर भी तुम गीत समाप्त कयो नहीं करते ? अक्षय झट तानमं उसका जवाब देते-- क्या समाप्त करनेसे भाई, कभी हुआ कल्याण 1 ते न जलने पायेगा, मे कर दंगा दीपक निवोण । इस प्रकारके व्यवहारसे सब लोग ऊवकर कहते हैं कि अक्षयसे किसी तरह पेश नहीं पाया जा सकता | पुरबालाने भी खीझकर कहा--उस्तादजी, जरा ठहरिये ! मेरा प्रस्ताव यह है कि दिनमें एक समय ऐसा निश्चित करो कि जब तुम परिहास नहीं करने पाओगे--जिस समय तुम्हारे साथ दो एक कामकी बाते दो सकेगी । अक्षय--गरीबका लड़का हूँ, इस छिये स््रीको अपनी बात कहनेकी आज्ञा देनेका साहस नहीं कर सकता । डर लगता है कि कहीं झट बाज; बंद न मॉग बैठे ! ( फिर गाता है । )) कहीं वह मोग न बैठे मन, इसीसे लेता हूँ मन खींच; कीं रम बेटे ओखोम- सखी लेता हूँ, आँखें मीच । पुरबाछा--अच्छा, तब जाओ | अक्षय---नहीं, नहीं, रूठो मत | अच्छा कहो, क्या कहती हो, सब सूनूगा । टिस्टमें नाम लिखाकर तुम्हारी परिहास-निवारिणी सभाका सदस्य बनूँगा । तुम्हारे सामने कभी किसी किस्मकी बेअदबी नहीं




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