शोध - प्रविधि | Shodh Pravidhi

Shodh Pravidhi by विनय मोहन शर्मा - Vinay Mohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कसा शोध क्या है ? / 7 नहीं, उनकी तकंसम्मत व्याख्या भी है । यूरोप में अरस्तू ने निगमन तर्क-प्रणाली से निर्णायक तथ्य प्रस्तुत करने का उपक्रम किया । इस पद्धति में पूर्वमान्य सिद्धान्त को प्रधान आधार मान लिया जाता है । अनुमानित विद्वास को विशिष्ट उदाहरण द्वारा पृष्ट कर 'निष्कष निकाला जाता है । प्रधान आधार-वाक्य देवपूरुष अप्रतिम होते हैं गौण आधार-वाक्य न रास देवपुरुष हैं । निर्णय अत: राम अप्रतिम हैं । यूरोप में तक॑ की इस पद्धति ने अनुसंधान में वैज्ञानिक प्रक्रिया को जल्स दिया है । भारतीय नयायिक की तकं-पद्धति में अनुमान को स्पष्ट करने के लिए तीन नहीं, पाँच वाक्यों का प्रयोग होता है । जेसे-- राम अप्रतिम हैं-- प्रतिज्ञा क्योंकि वे देवपुरुष हैं-- हेतु सभी देवपुरुष अप्रतिम होते हैं-- जैसे कृष्ण, बलराम, बुद्ध, ईसा राम भी देवपरुष हैं उपनय अत: वे अप्रतिम हैं-- तिगसन यूरोप में बाद के ताकिकों को अनुभव हुआ कि शोध की प्रथम निगमन प्रणाली निर्दोष नहीं है । इसमें पूर्वें निर्धारित विद्वास या मान्यता को लेकर अग्रसर होना पड़ता है। अतः बेकन आदि चिन्तकों ने प्रत्यक्ष निरीक्षणजन्य अनुभव को प्रमुखता प्रदान कर अनुसंधेय तथ्य की ओर अग्रसर होने की विधि पुरस्सर की । इसमें विशेष से सामान्य तथ्य तक पहुँचने की क्रिया निहित है । इसे 6006 0 8 (तक की आगमन प्रणाली ) कहा जाता है । इस पद्धति को पुर्वे उदाहरण से इस प्रकार समझाया जा सकता है--राम अप्रतिम हैं क्योंकि उनके कृत्य देवपुरुष के समान हैं । (पर वेदान्ती भौर मीमांसक प्रथम तीन अवयवों को ही पर्याप्त मानते हैं) । अत: देवपुरुष होते हैं । पर यह पद्धति भी सर्वेथा निर्धान्त और बेज्ञानिक नहीं जान पड़ी । बेकन परिकल्पना की स्थापना के ही विरुद्ध है, जिसे ठीक नहीं समझा गया । क्योंकि शोध का कोई ध्येय-लक्ष्य निर्धारित किए बिना शोधार्थी अंधकार में ही भटकता रहता है । हाँ, इस बात का ध्यान अवश्य रहे कि येनकेनप्रकारेण परिकल्पना को सिद्ध करने का दुराग्रह न हो । बेकन की आगमन-पद्धति की आलोचना ... करते हुए लाराबी ने लिखा है “यदि कोई यों ही तथ्यों को बटोरना मात्र चाहता हो तो बात दूसरी है । ज्ञान का अन्वेषी वस्तुओं को निर्ददेश्य देखकर शान्त नहीं रह सकता, उसे




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  • himanshuravi

    at 2024-10-17 14:18:41
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  • himanshuravi

    at 2024-10-17 14:18:06
    Rated : 1 out of 10 stars.
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