डाक्टर बलदेवप्रसाद मिश्र | Daktar Baladevaprasad Mishr

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Daktar Baladevaprasad Mishr by किशोरीलाल शुक्ल - Kishorilal Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ ने रायपुर बुलवा लिया श्रौर न केवल वकालत में किन्तु कांग्रेस के सावंजनिक कार्यों में भी उन्हें श्रपना सहयोगी बनाया । दस महीनों तक डा ० मिश्र रायपुर में रहे प्रौर वहाँ उन्होंने साहित्यिक वातावरण में भी प्रपना पूणं योगदान दिया। वहीं एक सप्ताह मे उन्होने शंकर दिग्विजय नामक नाटक लिखा जो श्रागे चलकर नागपुर विश्वविद्यालय के एम० ए० में पाठ्यग्रन्थ भी रह चुका है । डा० मिश्र का मन वकालत में नहीं लगा श्रौर इसलिए परिस्थितियों ने जब उन्हें रायगढ़ राज्य में जज (न्यायाधीश) होकर जाने को विवश्च कियातव उन्होंने नौकरी अ्रनिच्छापुवंक स्वीकार कर ली । वहाँ वे एक वषं न्यायाधीश रहकर, ७ वपे नायब-दीवान व दस वपं दीवान (सन्‌ १६४० तक) रहै । इस बीच उन्होने प्रशासनिक क्षेत्र में तो महत्त्वपूण सेवाएँ की ही श्रौर काफी कीति तथा प्रतिष्ठा भी कमाई किन्तु साहित्यिक क्षत्र में भी उन्होंने अपनी लेखनी से श्रनेक ग्रन्थ दिये श्रौर नागपुर विश्वविद्यालय में जब से हिन्दी विभाग श्रलग हुमा श्रौर छत्तीसगढ़ क्षेत्र का नागपुर विदवविद्यालय से सम्बन्ध रहा तब तक वे हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे । वहीं रहते हुए १९३६ में तुलसी दशेन' नामक शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत करके रिक्षा-विषयक सर्वोच्च उपाधि डी° लिट्‌० भी प्राप्त की । भारतीय भाषा पर उसी भारतीय भाषा मे शोध-प्रबन्ध लिखकर देने की छूट भारतवर्ष में सम्भवत: उन्हीं ने सबसे प्रथम प्राप्त की जिसका श्रनुकरण श्रन्य विश्वविद्यालयों में हूग्रा । १९४० में स्वास्थ्य की गड़बड़ी के कारण वे विदिष्ट पेन्शन पर श्रवकाश प्राप्त करके रायपुर भ्रा गये श्रौर वहाँ श्रनेक सावंजनिक संस्थाश्रों का संचालन किया । जब १९४२ के बाद सावंजनिक भाषणों श्रादि पर कड़ा प्रतिबन्ध लग गया था तब उन्होंने प्रमुख नेताश्रों के गुप्त संकेत के श्राधार पर श्रपने मानस प्रवचनों द्वारा राष्ट्र चेतना के विचार जाग्रत रखे । १६४४ में बिलासपुर ने एक महाविद्यालय खोला जिसके संचालन के लिए वे सोचे गये शभ्रौर चार वर्षों तक उन्होंने वहाँ रहकर उस स्थान की भी अनेक सावंजनिक संस्थात्रों में प्रमुख भाग लिया । लगभग १९४७ में वे फिर बीमार पड़ प्रौर श्रनेक वर्षों तक म्रस्वस्थ रहे । श्रस्वास्थ्य के कारण बिलासपुर तो उन्हें छोड़ना ही पड़ा परन्तु इसी बीच रायपुर के दुर्गा श्राट्‌ स कालेज की भी नींव सुदृढ़ करने के लिए उन्हें एक वर्ष तक उस संस्था का श्रवेतनिक प्राचार्य रहना पड़ा । १९४३ में वे महाकोदशल भारत सेवक समाज के प्रदेश संयोजक नियुक्त किये गये ग्रौर तब से उनका सम्पक देशरत्न डा० राजन्द्रप्रसादनजीसे हुभ्रा जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया । डा० मिश्र छह वर्षों तक प्रदेश संयोजक रहे ग्रौर न केवल महाकोशल का ही किन्तु पुरे मध्य प्रदेश का कार्य संभाला । इस




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