रेत और झाग | Ret Aur Jhag

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Ret Aur Jhag by खलील जिब्रान - KHALIL GIBRAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रेत अर फाग इन समुद्र-तटों पर मैं उनके रेत श्रौर भागों के बीच सदा के लिए चलता रहूंगा । निस्सन्देह समुद्र का चढ़ाव मेरे चरण- चिह्लॉं को मिटा देगा श्रौर हवा समुद्र के कागों को उड़ाकर ले जाएगी, परन्तु यह समुद्र धौर उसका तट सदा के लिए-श्रनंत काल तके कै लिए-रहैगे 1 © एकं नार मैंने अ्रपनी सुट्टी कुहरे से भरी । फिर जो उसे खोला, तो कुहरे को एक कीड़ा बना पाया । मैने दुबारा मुदरी बंदकीश्रौर सौली, तो वहां कीड़े की जगह एक चिड़िया थी । फिर मैंने उसे बंद किया श्रौर खोला, तो मेरी हथेली पर एक श्रादमी खड़ा था, जिसका चेहरा छोकातुर था श्रौर हृष्टि ऊपर की तरफ । अन्तिम बार मैंने फिर मुट्ठी बन्द की आर फिर जो उसे खोला, तो वहां कुहरे के सिवाय कुछ भी न था । परन्तु इस नार मैने एक श्रत्यन्त मधुर श्रौर रसीला गीत सुना । । ® # 1 कल तक मेरा विचार था कि मैं एक सूक्ष्म टुकड़ा हूँ, जो श्रनियमित रूप से जीवेन के घेरे मे चक्कैर लगा रहा है । पर ‡७;




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