सप्तभंगी - तरंगिणी - प्रवचन | Saptabhangi - Tarangini - Pravachan

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Saptabhangi - Tarangini - Pravachan by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सप्तभद्धी तरद्धिणी प्रवचन ¦ [ ११ 'कंथचिंतु है था घट संवंधा है ? ऐमी जिज्ञासा ड्ोनेपर उत्तर-वन गया कि घट कथ चितु है । घट क्थचितु है याने श्रपने स्वरूपसे है । घट नवंयाः है, ; ऐसा नहीं हैं अर्थात्‌ घट शरन स्वरूपसे है श्रौर पट प्रादिक समस्त पदार्थोके स्वरूपसे सब प्रकारमे है, यह बात वहाँ नही है। तौ बराबर यदी सश्चय जिन्नासा रर प्रन हुग्रा ।' उसके उत्तेरमें यह्‌ प्रथम भद्ध निष्पन्न होता है कि घट कथा चितु है । थ ^ 40 ५ = + ~ प्रश्रम मद्धके प्राधाररभुतःसश्ञयन्ञानकी उत्पत्ति. होतैरी असम्मवताकी चर्चा ^ व-उमका वानि थे दि एव ~, दर न । फी ` ^ ^+ 1 ,- , -प्रम यहाँ.श ह्लाक्तार/कहता है£कि देखिये ! सयकी कोटियाँ उन पदार्था उन घरोंमि बन दी हैं-जो किसी/नर्रह'प्रसिद्ध-तो-हो,। गौसे ुछ-अपेरे उजेलेके, ममयमे प्रण कोई नागरिक घूमने गया' किसी नई गलीसे सो ड्रेस: एक,ऊने लम्ते, हू ठुको देव एरादसे यह संशय होंगया कि यह ठुठ. है.पा,पुरुप बडा है,” ,तो भाई. दढ भी प्रसिंद्ध है पुरुष! भी प्रसिद्ध है 1/जव दोनो वातें कही उप्र सिद्ध-हैं तो-उसका तो. संशय बन गया, प्र जो 'वीज कही प्रसिद्ध नही है'उसका सशभ, कंसे ; बन. सकता है ? प्रणम मज़ूके श्राघारभुत सशयज्ञानमे यदि यह बात कही जाय कि यहाँ सशयकी को टियाँ,यो बनाई जाँय कि घटका कथचित्‌ सत्य है या सर्वथा स्व ? तो यूं ,केथवित्‌ सन्व तो प्रसिद्ध है श्रीर सवंथा भ्रस्तित्व कही ,भी प्रसिंद्ध नहीं । फिर यहाँ हुशयकी _ कोटि कसे बन गई ” इस शख््के उत्तरमे' कहते है कि यद्‌ शका करना, यो युक्त नही, हैकि 'कभी अप्रसिद्ध भी हो कुछ, लेकिन उसकी प्रसिद्ध रूपमे समभ दुन रही हो तो वहाँ 'राशयका विपयपना सरभव है।? .ययपि स्॑था अस्तित्व होना सर्वधा ना सतित होना वास्तविक तीं है, क्योकि वहु सिद्धान्त दी नही है लेकिन जानकारी या _विवादके प्रसद्धमे, यह वात प्रमि हौ रही है नि'ण्स्तु क्रथचित्‌ ही प्रस्त हैया सर्वथा रस्ति एहै * तो झप्रसिद्ध भी जब प्रसिद्ध रुपये ज्ञान हो रहे हो तो वोनो ही प्रसिद्ध हो गए । 7 यों फथ चितु भ्रस्वित्वि-घ्रौर' सब था 'श्रस्तिस्व दोनों प्र सद्ध होनेपर यहाँ साशय वन जाता है । यहाँ वो कोटियोको पुन: समक्िये ! घटपतेस हित , स॒त््व यह तो हुमा एक कोटि का ज्ञान श्रौर सच प्रकारसे सहित सत्त्व यह हुई दूसरी कोटिकी , समझ । तो यहाँ वस्तुके सत्वमे सब प्रकारका सद्धित सत्त्व नही हैं याने घट श्रपने स्वरुपसे है श्रौर परके स्वरूपसे नही है, यह वात तो मानी ही जा रही है । इसमें जो प्रथम भड्ड बना कि घट कथित प्रस्ति है। तो वहाँ यह सशय हुझा था घटपनेसे सहित सत्तासे,युक्त है या सब पदीर्थोफी सत्तासे युक्त है * ऐसा सशग होनेपर प्रथम भड्धकी उत्पत्ति हुई । तो- यहाँ संक्षेपमे निष्कप यह समसिपे कि घटपने करके स.हत कथ चित संत्वकों समकना एक कोटि है ग्रौर सेव प्रकार सहित सत्वकों समझे ग दूपरी कोटि है । चीज चनर्ही है उत्ताके सम्बभ्यमे । षट है, दै यह्‌ यहाँ मूल वात कद गई, उसमें यह । घटरूपसे हैं




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