श्री तत्त्वार्थ - श्लोकवार्तिकम् | Shri Tattvarth - Shlokavartikam

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Book Image : श्री तत्त्वार्थ - श्लोकवार्तिकम्  - Shri Tattvarth - Shlokavartikam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) उपयोगी परामर्श, बहुमूल्य सखद, एवं सबसे अधिक प्रकाशन कार्यमें विशेष दिख्चर्स्सकि कारण ही दम इस कार्यम आगे बढ रहे है, यह छिखनेमें संकोच नहीं होता है। इस. खंडका समर्षण -- ८ ` < ~ यज च चर ˆ प्रकृत खंड जेनसमाजके सर्वोपरि नेता; दानवीर, रायबदादुर, राज्यभूषण, रावराजा, द्सुदौखा, जनद्विवाकरः, श्रीर्मत्‌ सर सेर हुकुमचंदजी के करकमलोमे प्रंथमालांके अध्यक्षजीके द्वास समर्पित है । इसमे आचिय है | श्रीमाननीय सरसेठ साहब ग्रंथमाठाके संरक्षक है । उनकी संरक्ष- कततामि ही प्रंथमालाने ऐसे महान्‌ प्रंथराजके प्रकाशनसददा गुरुतरकार्यकों करनेका साहस किया है । इसढिए उनको अपने कार्यको देखकर संतोष होगा । संतोषके स्थानमे ही समपंण स्थान पाता है| दूसरी बात आज श्रीमत सरसेठ सावका समाजमे सर्वोपरि प्रमाव है । उन्होंने आजतक ध्र व समाजकी सेवा जो कौ है एवं इस वयेोघृद्ध अवस्थामे मी जो कर रहे है, वह महत्व पूर्ण और अनुपम है. । तीर्थक्षेत्रापर आये हुए संकट, जंगमती्थ साघुसंतोके प्रति आये हुए उपस्ग, श्री सरसेठ साहबके द्वारा तत्परताके साथ किये गये प्रयत्नों द्वारा समय समयपर दूर हुए है । आपकी : तीथमक्ति श्छाघनीय है। परमपूज्य आचाये कुंधुसागर महाराजके चरणोमे आपकी विशेष भक्ति थी | आपके द्वारा केवछ समाज हीं प्रमावित नही, र्ट्‌ भी आप सदृश विभूतिको पाकर अपना गौरव समझता हैं । ब्रिटिश शासनकाठमें भी आप राजसम्मानित थे । ग्वालियर, इंदौर, उदयपुर आदि देशी रियासतोमे आपको सम्मानपूर्ण स्थान था। अखिल भारतवर्षोथ दि. जैन महासभाके आप संरक्षक है । मह्यसभा ओर अखिल समाज आपकी धर्मप्रियतासे अत्यधिक प्रभावित ई | आपकी व्यापारकुशलताका प्रभाव भारतमे ही. नहीं, विंदेशमे मी पयौप्तरूपसे है । आपका अभ्युदय ओर वैभव दर्शनीय है । राजप्रा्ादतुल्य शीड्षमहल, देवमवनतुल्य इमवन, विचित्रैभवसंपन रामह एवं सबसे अधिक पुण्यप्रभावको व्यक्त करनेवाढे देवाधिदेव जिनेद्रदेवका संदर मंदिर; आपके सातिशय पुण्यके प्रमावको व्यक्त करते है । आपने अभीतक करोडों रुपरयोकी संपत्तिका दान कर अपरिग्रहवादका आदरं उपस्थित क्षिया है । पूजन, खाध्याय, सतपात्रदान, राखग्रवचन, तत्वचितन आदि पावन कार्यम आप ॒नियमितरूपसे दत्तचित्त रहते हे । विशेष महत्वका विषय यह है कि संसारके अतुर भोगको भी पुण्यकर्मोदयजनित फक होनेके कारण आपने असार समझकर शेष जीवनको केवल आत्मसाधनामे छगानेका निश्चय किया है । यह आपकी आसनमव्यताको सूचित करता है । आप अब अपना जीवन मुख्यतः आत्महितके कार्यमें ही उपयोग कर रहे हैं । सदा शास्रस्वाष्याय, तेत्वचर्चा, आत्म्िंतन एवं वैराग्यपरिणति ही आज आपके दैनिक कार्यक्रम दें । ऐसी अवस्थामें आपने निश्चित ही दुरम मनुप्यजीवनको सफर बनाया है | ऐसे भव्य पुरुष तचसुचमे धन्य हैं । ऐसे घन्य कंरकमलोमे आज प्रकृत प्र॑थराजको समर्पण करनेका भाग्य संत्थाको मिल रहा है, इसका हमे हं दै |




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