श्री तत्त्वार्थ - श्लोकवार्तिकम् | Shri Tattvarth - Shlokavartikam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
658
श्रेणी :
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No Information available about पं. माणिकचन्द्र जी - Pt. Manik Chandra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
उपयोगी परामर्श, बहुमूल्य सखद, एवं सबसे अधिक प्रकाशन कार्यमें विशेष दिख्चर्स्सकि कारण
ही दम इस कार्यम आगे बढ रहे है, यह छिखनेमें संकोच नहीं होता है।
इस. खंडका समर्षण -- ८ ` < ~ यज
च
चर
ˆ प्रकृत खंड जेनसमाजके सर्वोपरि नेता; दानवीर, रायबदादुर, राज्यभूषण, रावराजा,
द्सुदौखा, जनद्विवाकरः, श्रीर्मत् सर सेर हुकुमचंदजी के करकमलोमे प्रंथमालांके अध्यक्षजीके द्वास
समर्पित है । इसमे आचिय है | श्रीमाननीय सरसेठ साहब ग्रंथमाठाके संरक्षक है । उनकी संरक्ष-
कततामि ही प्रंथमालाने ऐसे महान् प्रंथराजके प्रकाशनसददा गुरुतरकार्यकों करनेका साहस किया
है । इसढिए उनको अपने कार्यको देखकर संतोष होगा । संतोषके स्थानमे ही समपंण स्थान पाता है|
दूसरी बात आज श्रीमत सरसेठ सावका समाजमे सर्वोपरि प्रमाव है । उन्होंने
आजतक ध्र व समाजकी सेवा जो कौ है एवं इस वयेोघृद्ध अवस्थामे मी जो कर रहे है, वह महत्व
पूर्ण और अनुपम है. । तीर्थक्षेत्रापर आये हुए संकट, जंगमती्थ साघुसंतोके प्रति आये हुए उपस्ग,
श्री सरसेठ साहबके द्वारा तत्परताके साथ किये गये प्रयत्नों द्वारा समय समयपर दूर हुए है । आपकी
: तीथमक्ति श्छाघनीय है। परमपूज्य आचाये कुंधुसागर महाराजके चरणोमे आपकी विशेष भक्ति थी |
आपके द्वारा केवछ समाज हीं प्रमावित नही, र्ट् भी आप सदृश विभूतिको पाकर अपना गौरव
समझता हैं । ब्रिटिश शासनकाठमें भी आप राजसम्मानित थे । ग्वालियर, इंदौर, उदयपुर आदि
देशी रियासतोमे आपको सम्मानपूर्ण स्थान था। अखिल भारतवर्षोथ दि. जैन महासभाके आप
संरक्षक है । मह्यसभा ओर अखिल समाज आपकी धर्मप्रियतासे अत्यधिक प्रभावित ई | आपकी
व्यापारकुशलताका प्रभाव भारतमे ही. नहीं, विंदेशमे मी पयौप्तरूपसे है । आपका अभ्युदय ओर
वैभव दर्शनीय है । राजप्रा्ादतुल्य शीड्षमहल, देवमवनतुल्य इमवन, विचित्रैभवसंपन रामह
एवं सबसे अधिक पुण्यप्रभावको व्यक्त करनेवाढे देवाधिदेव जिनेद्रदेवका संदर मंदिर; आपके
सातिशय पुण्यके प्रमावको व्यक्त करते है । आपने अभीतक करोडों रुपरयोकी संपत्तिका दान कर
अपरिग्रहवादका आदरं उपस्थित क्षिया है । पूजन, खाध्याय, सतपात्रदान, राखग्रवचन, तत्वचितन
आदि पावन कार्यम आप ॒नियमितरूपसे दत्तचित्त रहते हे । विशेष महत्वका विषय यह है कि
संसारके अतुर भोगको भी पुण्यकर्मोदयजनित फक होनेके कारण आपने असार समझकर शेष
जीवनको केवल आत्मसाधनामे छगानेका निश्चय किया है । यह आपकी आसनमव्यताको
सूचित करता है । आप अब अपना जीवन मुख्यतः आत्महितके कार्यमें ही उपयोग कर रहे हैं ।
सदा शास्रस्वाष्याय, तेत्वचर्चा, आत्म्िंतन एवं वैराग्यपरिणति ही आज आपके दैनिक कार्यक्रम
दें । ऐसी अवस्थामें आपने निश्चित ही दुरम मनुप्यजीवनको सफर बनाया है | ऐसे भव्य पुरुष
तचसुचमे धन्य हैं । ऐसे घन्य कंरकमलोमे आज प्रकृत प्र॑थराजको समर्पण करनेका भाग्य संत्थाको
मिल रहा है, इसका हमे हं दै |
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