भट्टिकाव्य का साहित्यशास्त्र की दृष्टि से आलोचनात्मक अध्ययन | Bhattikavya Ka Sahityashastra Ki Drishti Se Aalochanatmak Adhyayan

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Bhattikavya Ka Sahityashastra Ki Drishti Se Aalochanatmak Adhyayan by निशा गुप्ता - Nisha Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय (३ ) मे बराबर दिखाई पडता है । ऋग्वेद काल मे जिन देवताओं का प्रमुखता से वर्णन है लौकिक साहित्य मे वे गौण रूप से प्रतिपादित है । पद्य की रचना जिनण्दोमेकी गयी है, वे छद भी वैदिक छदो से भिन्न है । दो मे गायत्री, जगती तथा त्रिष्टुप्‌ का साम्राज्य है तो वहो उपजाति, वशस्थ ओर बसततिलका का विशाल साम्राज्य हे | वैदिक साहित्य का समाज दो वर्गो मे विभाजित है - आर्य ओर दस्यु अर्थात्‌ विजेता ओर विजित । लौकिक सस्कृत का समाज वर्णाश्रम व्यवस्था को लेकर चलने वाला पौराणिक समाज है । लौकिक साहित्य का समाज सामन्तवाद, सम्राटो, राजाओ का समाज हे । यद्यपि रामायण ओर महाभारत मे भी सामन्त वाद का वणन हे किन्तु ये दोनो काव्य वैदिक तथा लौकिक साहित्य के बीच की कड़ी है । यही कारण है कि बाल्मीकि ओर व्यास कवि होते हुए भी ऋषि तथा उनके काव्य कृतियाँ मानी जाती है । वैदिक साहित्य मे प्रतीक रूप से अमूर्तं भावनाओं की मूर्तं कल्पना प्रस्तुत की गयी हे, जबकि लौकिक साहित्य मे अतिशयोक्ति की अधिकता हे | | | इस प्रकार काव्य की दृष्टि से सस्कृत साहित्य का स्थान बहुत ऊँचा है । महर्षिं वाल्मीकि, व्यास, कालिदारा, भवभूति, श्रीहर्ष, माघ आदि महाकवियो की कृति्योँ आज भी उतनी ही नवीन ओर आनन्ददाथिनी हे, जितनी की वे अपने रचनाकाल मे थी । रामायण, महाभारत, रघुवश, किरातार्जुनीयम्‌ आदि ग्रन्थ आज भी प्रेरणा के स्रोत है | प्रसिद्ध भाषाविद्‌ रेणु ने कहा है “साहित्य के पुस्तकालय मेँ किसी वस्तु का अभाव रह जाएगा यदि वहो भर्तृहरि, कालिदास ओर भारवि के महाकाव्य विद्यमान न हो |“, साहित्य शास्त्र का ही अपर नाम काव्यशास्त्र' हे । काव्य के अन्तर्गत दृश्यकाव्य ओर “श्रव्यकाव्य' ° दोनो का समाहार होने से काव्य शास्त्र को समस्त काव्यो की कसौटी माना गया है | इस प्रसग मे यह बात उल्लेखनीय हे कि काव्य निर्माण एव काव्य रसास्वादन के कुछ निश्चित प्रयोजन रहे है । काव्य एक कर्तव्य क्रम हे जिसका उदेश्य मानव--जीवन की पूर्णता की अभिव्यक्ति है | वास्तव मे कवि के प्रयोजन, काव्यरसिक तथा काव्यालोचको के प्रयोजन एक रूप दही होते हैँ | काव्य- प्रयोजन -- यहो पर सक्षेप मे काव्य-प्रयोजन पर आचार्यो के मत की चर्चा अप्रासबिगक नही होगी । काव्य शास्त्र के १ द्रष्टव्य - लेखक की पुस्तक - एाश्ाा76 {1ल्०ा165 0 ल्वप्८व0ा, एपए1176त 0५ 1.चल्ञापं सपक्षकाा ^ दा, 10801181 2040, ^ 218. २ दृश्यश्रव्यत्वभेदेन पुन काव्य द्विधा मत्तम्‌ |” साहित्य दर्पण ६१




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