क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नुक्षेप एकत्रीकरण | Kshetriy Gramin Bainkon Dvara Nixep Ekatrikaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नुक्षेप एकत्रीकरण  - Kshetriy Gramin Bainkon Dvara Nixep Ekatrikaran

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्याम कृष्ण पाण्डेय - Shyaam Krishn Paandey

Add Infomation AboutShyaam Krishn Paandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(6) ग्रामीण साख की उपयुक्त व्यवस्था करने के लिये सरकार के साझे में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना होनी चाहिए, जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी शाखाओं का जाल बिछाकर देहातों में बैंकिंग सुविधाओं का विकास करे ओर कृषि के लिए आवश्यक मात्रा में सस्ती साख सुलभ करे | भारत सरकार ने गोरवाला समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया, परन्तु सरकार ने कोई राष्ट्रीय बैंक स्थापित न करकं तत्कालीन इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया को ही स्टेट बैक मेँ परिणत कर दिया । सन्‌ 1955 में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट स्वीकृत किया गया और इस ऐक्ट के अर्न्तगत इम्पीरियल बैंक की भारत स्थित समस्त सम्पत्ति और दायित्व स्टेट बैंक को 1 जुलाई, 1955 को सौंप दिये गये। इस प्रकार स्टेट बैंक 1 जुलाई सन्‌ 1955 से भारतवर्ष में कार्य कर रहा है। काफी लम्बे समय तक व्यापारिक बैंकों का ग्रामीण साख में हिस्सा बहुत कम था। उदाहरण के लिए, कुल ऋण में व्यापारिक बैंकों का हिस्सा 1950-5] में 0.9 प्रतिशत तथा 1961-62 में 0.7 प्रतिशत था। इसके कई कारण थे- एक तो यह कि भारत में कृषि मुख्य रूप से जीवन निर्वाह का एक साधन मात्र रही है और दूसरे इसका स्वरूप असंगठित व वैयक्तिक है! इसके अलावा, कृषि अधिकतर मानसून पर आधारित है इसलिए इसके उत्पादन मँ अनियमितता है और उतार चढ़ाव होते रहते हैं | इसके विपरीत, औद्योगिक क्षेत्र अधिक संगठित होता है और वह प्राकृतिक कारकों पर निर्भर नहीं करता । यही कारण है कि बैंको का ध्यान कृषि की अपेक्षा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now