आधुनिक कविता की भाषा | Aadhunik Kavita Ki Bhasha

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Aadhunik Kavita Ki Bhasha by श्री बृजकिशोर चतुर्वेदी - Shri Brijkishor Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) लायगी उसकी भी 'ऊषा की लाली” प्रतीक रहेगी !! श्रोर, यदि प्रेमिका ने, साहस कर, प्रमी महदानुभाव के ज़रा कान मसल दिए. हों तो कानों की लालिमा की प्रतीक भी ऊषा की लाली, पूर्ववत्‌ बनी रहेगी !! *छायावाद” में, इस प्रकार, ऊषा की लाली विभिन्न भावों का “झजायबघर' रह सकती दे श्रौर श्रालोचक को सद्ददय बनकर, कवि के हृदय-सागर में पहुँच कर; उलकी हुई उर्मियों से श्रपने को बचाकर यह बताना चाहिए कि “ऊषा की लाली' से किस समय में किस सम्बन्घ सें कवि नै क्या श्रथ लिया है !! यदि कवि ने लिखा कि “कोयं ने भी पिना मोती तो पाठक, श्रोता, श्रोर ऋ्रालोचक को मिल कर यह समस्या सुलभ्ानी चाहिए कि कवि का झाशय क्या है ? 'कॉँटों' का कया तातर्य है श्रौर मोती का क्या दै ? एक ने कदा कि कटेः प्रतिकूल वातावरण के चिन्ह हैं श्र “मोती” विजय अथवा शान्ति का प्रतीक है श्रौर कविका श्राशय है कि प्रतिकूल वातावरण में भी विजय हुई श्रथवा चित्त में शान्ति रही । दूसरे की समभ में मोती श्रसुत्रों का प्रतीक था श्रतएव श्रर्थ यह किया गया कि प्रतिकूल वातावरण में श्रांसू श्रा गए । तीसरे व्यक्ति ने बताया कि “काँटो” का श्राशय कुटिल, क्रूर श्रथवा कठोर दयसे दै शरोर कवि का श्राशय य६ है कि ऐसे छृदय वाले व्यक्ति के सी मावावेश के कारण श्राँसू श्रा गए श्रथवा क्रूर-हृदय भी शोमायमान हुए । चौथे व्यक्ति की सम्मति यह थी कि किं के ऊपर मोती” रुलाब का सूचक है नो कठिनाई के श्रनन्तर प्रेम की सफलना का प्रतीक है } मेरे सरीखे शुष्क हृदय में यह पंक्ति पढ़ते ही श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक रचना पर ध्यान गया जहाँ बबूल दत्त से श्राती हुई मीनी-भीनी मदक का उल्लेख दै | मैंने कददा हो नहों कवि का ध्यान भी इघर गया होगा झर दूर से बबूल के फूल मोती सरीखे चमकते ही हैं श्रतएव कवि का तातर्य शववूलः वृक्ष से है जो प्रगति- बाद का प्रतीक है !! इस प्रकार एक छोटी सी पंक्ति के विषय मे पाच सम्मतियाँ रहीं श्रौर फिर मी स्यात कवि का श्राशय छाय! से श्राच्छादित दी रहा || सच बात यह है कि छायावादी कियों श्रौर दछायावादी स्दर्यो की एक गोल मेज परिषद्‌ की श्रावश्यकता यी जो यह वात निश्चय कर देती कि




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