राजा राममोहन राय एवं केशवचन्द्र सेन के सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों का तुलनात्मक अध्ययन | Raja Ramamohan Ray Avam Keshavachandra Sen Ke Samajik Tatha Rajneetik Vicharon Ka Tulanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अग्रसर करने के लिए प्रेरित करता था, सती को श्रद्धा का पात्र समझा जाता था । इस प्रथा के पीछ
आर्थिक कारण भी था । बंगाल मे दाय-भाग के प्रचलन से पुत्रहीन विधवा का सयुक्त परिवार की
सम्पति में वही अधिकार हो गया था, जो उसके पति का होता था, परिवार की सम्पत्ति पर अधिक
लोगो का हिस्सा न हो इसके लिए यह उचित समझा गया कि विधवा को मृत पति के साथ प्राण
त्याग के लिए प्रेरित कर दिया जाए या उसे बलात् अग्नि शिखाओ को अर्पित कर दिया जाए । दी
अकाल के कारण निर्धनता की चरम सीमा न केवल बगाल में पहुँच गई, वरनू सम्पूर्ण भारत बंगाल
हो गया था । ऐसी स्थिति मे विधवा पुनर्विवाह के द्वारा जनसख्या का बढ़ना घातक समझा गया ।
निर्धनता अकाल व जनसंख्या की दृष्टि से विधवाए पार मे सबसे बडा बोझा थी । इसके अलावा
विधवा स्त्री को पति के घर से भी कोई सरक्षण प्राप्त नहीं होता था और न ही वे अपने माता-पिता
के घर से ही कोई संरक्षण प्राप्त कर पाती थी । ऐसी स्थिति में विधवाओं को जला देना आर्थिक
विवशता ही समझी जा सकती है ।
मध्य प्रदेश के शिलालेख से ज्ञात होता है कि सन् 1500 से 1800 ई0 के मध्य जुलाहा,
नाई, राजा आदि सभी सामाजिक श्रेणियो और वर्गों की स्त्रिया सती हुआ करती थीं । टाड ने लिखा
है कि माखाड मे सन् 1724 मे राजा अजीत सिंह की मृत्यु पर 64 रानियां उसकी चिता पर चढ़ी
सती की यह प्रथा सम्पूर्ण देश मे प्रचलित थी, परन्तु बंगाल राजपुताना, बनारस, राजस्थान आदि
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र थे ।2 यात्रियो ओर लेखकों से ज्ञात होता है, कि बंगाल में यह प्रथा
विधवा का जलना भारत के सभी जगहो की तुलना मे सबसे अधिक प्रचलित थी । 1815 से 1828
के मध्य बगाल से बनारस तक के क्षेत्र के अन्दर सबसे अधिक संख्या में सती की घटनाएं मिलती
है। अग्र. तालिका से ज्ञात होता है, कि बंगाल मेँ सती की घटनाए कितनी तीव्र गति से बढ़ रही
थी--
[व की ही कि व दि जि न ही. ही हि जयतं आणक, क कि चि पिभ क पि ॐ चि माच्या भायि मो मे जान ककि कः परा नि कय णो जः मोका पाणं भयो प तोयाः जत ममम णण धयनि
कु ऐबे0जे0ऐ0 दुबाय, हिन्दू मैनस॑कस्टमस एण्ड सेरेमनीज पृ0-362
2. हरिदत्त वेदालंकार, हिन्दु विवाह का सक्षिप्त इतिहासं पू0-361
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