भविष्य पुराण एक सांस्कृतिक अनुशीलन | Bhavishy Puran Ek Sanskratik Anusheelan

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Bhavishy Puran Ek Sanskratik Anusheelan by श्रीमती ज्योति अरोरा - Srimati Jyoti Arora

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बताया है। महाभारत मे ही आदिपर्व' मे उल्लिखत शलोक के आधार पर आचार्य उपाध्याय के निष्कर्षानुसार देवसबधी आख्यान तथा वशानुचरित पुराणों के अविभाज्य अग माने गए है। 2 वेदो का उपनृहण करना ही पुराणों का उद्देश्य धा।> महाभारत^ मे राजवशवृत्तों के प्रतिपादन के संदर्भ मे वायु पुराण का उल्लेख विशेष महत्वपूर्ण है, जो आजकल प्रचलित वायुं पुराण मे प्राप्त राजवशावलियो से पूणतः साम्य रखता है। ८ हौप्किंस० के अनुसार जनमेजय के नागथज्ञ के आख्यान का जो स्वरूप वर्तमान वायुपुराण मे आख्यात है, महाभारत मे विवृत उक्त आख्यान से प्राचीनतर माना जा सकता है। इसी प्रकार लूडर्स पद्मपुराण मे वर्णित ऋष्यश्रुग आख्यान को महाभारत मे आख्यात उक्त आख्यान से अधिक प्राचीन मानते है। ˆ महाभारत का अन्तिम सम्पादन ईसा की चतुर्थ शती के पूर्वं अवश्य हो चुका था।° इस प्रकार पुराण साहित्य सरचना की प्राचीनता उक्त तिथि के पहले निर्धारित की जा सकती है। धार्मिक स्मृतियों मे पुराण को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। गौतम धर्मसूतर” मे बहुश्ुत (शास्त्र का ज्ञाता) की सिद्धि के लिए पुराण का ज्ञान आवश्यक बताया गया है। स्मृति काल मे पुराण को वेद के समान ही पवित्र समझा जाने लगा था। बि भोभो भयादि वदादानि तदे यदा भि तोके निनि कयः आगात तिद कितिति चिति पके आकि विनि जोकि जिः विड मियो मितो पो सि मि दि पे विणत नामे वन भानिभेतं यायो ये सो पो का पियो कोते का रेति कते सेनि किण पय पि नेनि पतेन स 1- 'पुराणेहि कथादिव्या आदिवंशाश्च धीमताम्‌। कथ्यन्ते ये पुरास्माभि. श्रुतपूर्व पितुस्तव । ।' महाभारत, आदिपर्व, 5.2 2- बलदेव उपाध्याय, पूर्वोद्धूत, पृ0 19, 20 3- 'इतिहासपुराणाभ्यां वेद समुपबृंहयेत्‌, महाभारत, 1.1.267 4- महाभारत, वनपर्व, अ0 191.16 5- बलदेव उपाध्याय, पूर्वोद्धृत, पू0 20 6- दौप्किंस, द ग्रेट एपिक ओंफ इण्डिया, पृ0 48 7- द्रष्टव्य, विण्टरनित्स, हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, भाग 1, पू0 521 8-~ द्रष्टव्य, पुसाल्कर, एपिक्स एण्ड द पुराणाज, भूमिका, १0 31 9- गौतम ध0 सृ0, 8.4-6




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