विष्णुधर्मोत्तर पुराण में प्रतिबिम्बित एवं संस्कृति | Vishnudharmottar Puran Men Pratibimbit Evm Sanskrati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11. पुराणमेकमेवासीत्तदा कल्पान्तरे नव । त्रिवर्ग साधनं पुथं शतकोरिप्रविस्तरम्‌ ।। निर्दग्धेषु चलोकेषु वाजिरूपेण तै मया । अंगानि चतुरो वेदाः पराणं न्याय विस्तरम्‌ ।॥ मीमांसा धर्मशास्त्रं च परिगृल मयाकृतम । मत्स्यरूपेण च पुनः कल्पादावुदर्णवे ॥ अशेषमेतत्‌ कथितमुद कान्तर्गतेन च । श्रुत्वा जगाद च मुनीन्‌ प्रति देवान्‌ चतुर्मुखः ।। पुराण प्रणयन का श्रेय मुख्यतः वेदव्यास को ओर आधुनिक काल मे इस साहित्य निर्माण का श्रेय मुनि कृष्ण द्वैपायन को है। साधारणतया पूराणो की संख्या 18 मानी गयी है । आद्य अक्षरों के आधार पर इसे एक श्लोक का रूप प्रदान किया गया है । मकारादि दो पुराण मार्कण्डेय तथा मत्स्य, भकारादि दो पुराण भागवत तथा भविष्य, बकारादि तीन पुराण ब्रह्म , ब्र्माण्ड ओर ब्रह्मवैवर्त, बकरादि चार पुराण विष्णु, वामन, वराह ओर वायु, अ से अग्नि, नाने नारदीय, पसे पदम्‌, लिड्‌ से लिङ्ग पुराण, ग से गरूण, कू से कूर्म तथा स्क से स्कन्द ये अट्टारह पुराण हैं । इनमे बहुत से वैष्णव तथा कुछ शैव धर्म से सम्बन्धित है । महाभारत ओर हरिवंश से उनका अत्यधिक निकट का संबन्ध है । इनमे वायु पुराण सबसे प्राचीन प्रतीत होता है । इसका हयिंश से बहुत साम्य है । मत्स्य में महाभारत जैसी ही मनु ओर मत्स्य की कथा है । कुर्म मं विभिन्न अवतारो, देवताओं और राजाओं की वंशावलिर्यो ओर महाभारत जैसी ही सृष्टि सम्बन्धी कल्पनाये हैँ । यर्हो सात द्रीपों का वर्णन है, जिसके केन्द्र मेँ जम्बू द्वीप है तथा मध्य में सुमेरू पर्वत है । भारतवर्ष इस महाद्वीप का प्रधान भाग है । पदम्‌ ब्र्तवैवर्त* ओर विष्णु मुख्यतः वैष्णवं पुरीण है । भगवत पुराण भी ऐसा ही है । भागवत पुराण का संकलन बहुत बाद में हुआ है ओर संभवतः इसका समय 13वीं शताब्दी है । इसका दशम स्कन्ध जिसमे कुष्ण की कथा है, सबसे अधिक प्रचलित हुई है । इसी से भक्तिकाल के बहुत से धर्मों ने प्रेरणा ली, और अपनी मूल आस्थाय बनायी ।




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