कृष्णाजी नायक | Krishnaji Nayak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श + कष्णाजी नायक *
के सभी भाइयों का वध कर दिया । फिर कुछ समय उपरान्त उसने मुबारक
का भी खून कर दिया श्रौर स्वय सुलतान बन बैठा
अब सलिको की बारी थी | उनके ्रम्रणी मलिक गाजी ने खुशरू खाँ
का सफाया किया श्र तुगलक-वश की स्थापना क्री । मलिक गाजी गयासदीन
तुगलक के नाम से तख्तनशीन द्ृश्रा । उसने 'लश्करी' श्रोर 'मुल्की” का भेद
त्रोर बखेडा सिटाने के लिए, मलिकों को सुल्की बन्दोबस्त का काय-भार भी
सौप दिया ।
उसका बेटा--मलिक उलृग खो देवगिरि का स्रा वना। उसके साले
का बेटा गुजरात का सूरा बनाया गया, जिसका नाम था मलिक अरब राजी ।
दक्षिण मे सलिक कापर जिस काम को ग्रधूरा होड गया था, उसे
मलिक उलुग खाने श्रागे बढाया |
बाद मे बह मुहम्मद तुगलक के नाम से दिल्ली का सुलतान बरना ।
मुहम्मद तुगलक श्रनेक दष्यियो से विचित्र व्यक्ति था | वह कवि था,
शिल्पी था, चिच्रकार था | हिसाव्-किताव का बडा जानकार था । उसका
लेखन तर उसके हस्ताक्षर ब्रत सुन्दर थे । मोता-जैमे श्रक्षर वह लिखता
था | विद्धान् था, ज्ञानी थाक धमो श्रौर दशनो क्रा ज्ञान उसे था ।
श्रप्रामासिकता उसे पसन्द नथी । सगीत से उसको श्रपार प्रमथा | उस
काल के सुलतानो मे सहज ही न पाए जनेवाल समी गुण उसमे थे |
अपने रुक्के वह स्वय लिखता श्र दूसरों के लिखे हुए, पढ़ता श्रौर हिसाव-
किताब की जच करता |
इतनी योग्यताएँ जिसमे थीं, उसमे दो श्रौर गुण-श्रवगुख ये --बह इतना
निय श्मौर हठी था कि उसकी निमेयता का बेपरवाही मे श्रौर हठ को कटोरा
मे बदलते समय न लगता । उसका कोप मीपण था | वह जिस चीज को
सच समभता, उसके लिए किसीकौ जान ले लेना उसके लिए; कठिन न
था | प्रतिंदिन उसके महल के सामने हाथी के पैरो मे कुचले गए. झपराधी
दमियों की सो-पचास लाशे पड़ी रहतीं । गणित के अपने जान के फलस्वरूप
उसने चमडे के सिंक्के चलाए श्र मलिकों श्रौर श्रमीरो का सघष टालने के
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