कृष्णाजी नायक | Krishnaji Nayak

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Krishnaji Nayak by गुणर्वतराय आचार्य - Gunarvataray Aachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श + कष्णाजी नायक * के सभी भाइयों का वध कर दिया । फिर कुछ समय उपरान्त उसने मुबारक का भी खून कर दिया श्रौर स्वय सुलतान बन बैठा अब सलिको की बारी थी | उनके ्रम्रणी मलिक गाजी ने खुशरू खाँ का सफाया किया श्र तुगलक-वश की स्थापना क्री । मलिक गाजी गयासदीन तुगलक के नाम से तख्तनशीन द्ृश्रा । उसने 'लश्करी' श्रोर 'मुल्की” का भेद त्रोर बखेडा सिटाने के लिए, मलिकों को सुल्की बन्दोबस्त का काय-भार भी सौप दिया । उसका बेटा--मलिक उलृग खो देवगिरि का स्रा वना। उसके साले का बेटा गुजरात का सूरा बनाया गया, जिसका नाम था मलिक अरब राजी । दक्षिण मे सलिक कापर जिस काम को ग्रधूरा होड गया था, उसे मलिक उलुग खाने श्रागे बढाया | बाद मे बह मुहम्मद तुगलक के नाम से दिल्ली का सुलतान बरना । मुहम्मद तुगलक श्रनेक दष्यियो से विचित्र व्यक्ति था | वह कवि था, शिल्पी था, चिच्रकार था | हिसाव्-किताव का बडा जानकार था । उसका लेखन तर उसके हस्ताक्षर ब्रत सुन्दर थे । मोता-जैमे श्रक्षर वह लिखता था | विद्धान्‌ था, ज्ञानी थाक धमो श्रौर दशनो क्रा ज्ञान उसे था । श्रप्रामासिकता उसे पसन्द नथी । सगीत से उसको श्रपार प्रमथा | उस काल के सुलतानो मे सहज ही न पाए जनेवाल समी गुण उसमे थे | अपने रुक्के वह स्वय लिखता श्र दूसरों के लिखे हुए, पढ़ता श्रौर हिसाव- किताब की जच करता | इतनी योग्यताएँ जिसमे थीं, उसमे दो श्रौर गुण-श्रवगुख ये --बह इतना निय श्मौर हठी था कि उसकी निमेयता का बेपरवाही मे श्रौर हठ को कटोरा मे बदलते समय न लगता । उसका कोप मीपण था | वह जिस चीज को सच समभता, उसके लिए किसीकौ जान ले लेना उसके लिए; कठिन न था | प्रतिंदिन उसके महल के सामने हाथी के पैरो मे कुचले गए. झपराधी दमियों की सो-पचास लाशे पड़ी रहतीं । गणित के अपने जान के फलस्वरूप उसने चमडे के सिंक्के चलाए श्र मलिकों श्रौर श्रमीरो का सघष टालने के




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