मोरी बिटिया | Mori Bitiya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रजनीकांत बरदलै - Rajanikant Baradalai
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सीरी बिटिया प्र
फिर भी जब तक सोवनशिरी माई की शीतल बयार न हो, तब तक
जीना दूभर रहता है । सोवनदिरी का शीतल जल न पियें तो इन मीरी
लोगों की प्यास ही न बुफ्ते । सोवनदिरी माई की गोद में छोटी-छोटी
नावों में चढ़कर मरम गरमा न लें, तो मीरी लोगों के मन पर रंग ही नहीं
चढ़ता । इसीलिए मीरी जाति के श्रधिकतर लोग सोवनणिरी माई के ही
तट पर बसते हैं। सोवनदिरी के दोनों किनारों पर जगह-जगह मीरी गाँव
हैं। कहीं-कहीं ऐसा भी है कि इस पार मीरी गाँव है, तो उस पार जंगल
है। ऐसे ही जंगलों को काटकर मीरी खेत बनाते हैं ।
ऐसे ही एक मीरी गाँव के पच्छिस की श्रोर श्राह धान के दो
खेत थे । ये दोनों खेत सोवनशिरी नदी के किनारे पर ही थे ।. दोनों
खेतों में दो मचान थे । बस, कोई दस-बारह नल* की ही दूरी पर । उस
समय उन दो में से एक मचान पर श्राठ-नौ साल की एक लड़की थी ।
दुसरे में एक तेरह-चौदह साल का लड़का था । दोनों के हाथ में बाँस
की एक-एक भाँकफरी ? थी । बीच-बीच में धान में बया, टुनकी श्रादि
नन्ही चिड़ियाँ पड़-पड़ जाती थीं । वह लड़का श्रौर लड़की दोनों ही
भाँफरी बजा-बजाकर चिड़ियों को हुशका रहे थे ।
कोई चार बजे की बेर हो चली । सूरज देवता धीरे-धीरे पच्छिम
के श्रासमान में खिसकने लगे । धूप की किरणें सोविनशिरी नदी में पड़-
कर भिलमिला रही थीं । वह् लडका श्रौर वहु लड़की दोनों झकेले-
लि का गित त
१. जन-जलाई में कटने वाला श्रौर बसंत में रोया जानं वाला गदर
या शराश्च या श्रसोजी' धान ।--श्रतु०
नल --श्राठ हथ (बारह ष्ट)
३. मल तका ! यह् एक विशेष प्रकार की कंभरी होती हैः निसे
बिहु गने के साथ भो बजाते हूं ।--श्रनु०
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