अथर्ववेद स्वाध्याय | Atharvaved Swadhyay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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शक १] झध्यात्म-प्रकरण । १६
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1
आ त्वां रुरोह वृहत्यूत पद्धिक्तरा कंडब् वचसा जातपेद्; ।
आ त्वा ररोदोण्णिहाक्षरो वषट्कार आ तवां स्रोह रोहितो रेत॑सा सह ॥ १५॥
अयं चैस्ते गभे प॒थिन्या दिव वस्तेयमन्तरिधम् ।
अयं चधस्यं विष्टपि स्व शकान् व्यानशे ॥ १६ ॥
वाचस्पते पृथिवी न॑ःस्थोना स्योना योनिसतल्पां नः सुरोवां ।
इरैव प्राणः सख्ये नो अस्त तं त्वां परमेष्ठिन् पयभिरायुषा चसा दघातु 1 १७॥
अथै- हे (जातवेदः) सव उत्पन्न हृएको जाननेवाले ! (त्वा वृहती आ रुरोद)
तुझपर चहती चढी है, ( उत्त पंक्तिः आ, ककुब् वर्च॑सा आ ) पंक्ति और
कङुव अपने तेजके साथ चडे द 1 ८ उष्णिदाक्षरः त्वा आरुरोद् ) उष्णिक्
दके अक्षरथी तेरे ऊपर चडे है तथा (रोहितः रेतसा खद ) सूय अपने
चीयेके साथ है ॥ ९५१
( अयं पथिव्याः गर्म वस्ते ) यह पथिकीके गर्भमे वसता है (अर्यं
दिदं अन्तरिश्चं चस्ते) यद् द्युलोक ओर अन्तरिक्ष रोक्मे वसता है ।
(अयं ज्रध्नस्य विपि स्वलोकान् चयानसे ) यद् प्रकारलेक्के रिरोभाग-
पर स्वगैल्योकमें च्यापता है ॥ १६ ॥
दे ( वाचस्पते ) वाणीके स्वामिन् ! (नः पृथिवी स्थोना ) हसारे लिये
पृथिवी सुखकर होवे! ( योनिः स्योना ) दसारे चयि हमारा घर सुखदायी
1 ( नः तत्पा रोवा ) दमारे व्यि विछोने खुखदायी हों । ( इह एव
खख्ये पाणः अस्तु ) यदाद दमारे खख्यमे प्राण रहे । हे परमेष्िन् !
तं त्वा अप्निः आयुषा च्चेसा परि दधातु ) वुद्चको यद् आभि आयु ओर
तेजसे धारण करे 1 १७ ॥
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भावाथे- हती, पंक्ति, कडद्, उप्णि्, वपद्फार आदि सव उसी एक देव का
चणेन कर रहे हैं, मानो वह इनमें रहा है ॥ १५ ॥
एक देव पृथ्वी अन्तारिक्ष और दूयुठोक के अंदर विद्यमान है। यह दूयुलोकके
उच्च स्थानपर रहता हुआ सपमें व्यापता है ॥ १६ |!
हे चाणीके स्वामी ! हमारे लिये पृथ्वी, घर. घिछोना आदि सब पदार्थ सुख-
दायक हों । हममें राण दीधेकारुतदः रहे और हमें चह दीव आयु और तेजके साथ
प्राप्त हो ॥ १७ ॥
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