त्याग भूमि भाग १ | Tiyag Bhumi (1995) Vol 1 Year 2 Ac 2461
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
784
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ )
बनं गया मूर्ति-मान-झातंक
बहु-प्रचल भूत पाप-परि-पाक ।
सत्यता-सूत्र हागया चिन्न ।
धल मे भिली धमं की धाक ॥
८ २ )
किन्तु किसके खुल पाये नेत्र ?
किया किस जनने उसका त्राण ।
विधा किस धर्मवीर का ममं?
दिया किस धमे-प्राणने प्राण ॥
( ३ )
पूजता जिसको निजेर-तरन्द ।
छात्र कलुष-जजंर है वह जाति ।
नरक-दुख का वह बना निकेत |
स्वगं जैसी निसमे थी शान्ति ॥
( ४ )
देख यह कोन हुआ कटि-चद्ध ।
किया किस जन ने कमे-महान ।
हो सका सत्य-भाव से कौन ।
त्याग-बलि-बेदी पर बलि-दन ॥
( ५
जहां थे साम्प्र-बाद् के सिद्ध ।
जहा का था स्वतंत्रता-मंत्र ।
बहन् कर पराधीनता इत्ति ।
बहा का जन-जन है परतत्र ॥
( ६ )
पर इसे कौन सका च्रवलोक ।
आज भी निद्रा हुई न मग ।
त्याग-भूमि
[ खागभृमि
न संकर-पोत कर सकी भग्न ।
त्याग-जल-निधि-उत्ताल-तर'ग ॥
( ७ )
लोकप्रियता है निदलित-प्राय ।
हे प्रबल-मूत विविध-परिताप ।
आये-गौरव-रवि है. गत-तेज ।
काल-कवलित है. कीति-कलाप ॥।
( ८ 2)
खड़े हो सके न तो भी कान।
गर्म हो सका न तो भी रक्त |
रगो मे सकी न बिजली दौड |
हुआ उर शतधा नहीं बिभक्तं ॥
( ९ )
हुआ खंडित मणि-मंडित क्रीट ।
हो गया चिन्न र-चय-हार ।
लिन गया पारस बहु-श्रम-प्राप्त ।
लटा कनकाचल-सम-संभार ॥
( १० )
कर सका कौन श्रात्म-उत्घगं ।
किया किंसन उर-रक्त-प्रदान ।
जाति देकर कपाल की भाल ।
कर सकी कव शिव का सम्मान ॥
( ११ )
देश जिससे बनता है स्वगं ।
कहाँ उर में है वह अनुराग ?
त्यागियों का सुनते हैं नाम ।
कहाँ है त्याग-भूमि मे त्याग ॥
अयोध्यासिद उपाध्याय
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