त्याग भूमि भाग १ | Tiyag Bhumi (1995) Vol 1 Year 2 Ac 2461

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Tiyag Bhumi (1995) Vol 1 Year 2 Ac 2461 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ ) बनं गया मूर्ति-मान-झातंक बहु-प्रचल भूत पाप-परि-पाक । सत्यता-सूत्र हागया चिन्न । धल मे भिली धमं की धाक ॥ ८ २ ) किन्तु किसके खुल पाये नेत्र ? किया किस जनने उसका त्राण । विधा किस धर्मवीर का ममं? दिया किस धमे-प्राणने प्राण ॥ ( ३ ) पूजता जिसको निजेर-तरन्द । छात्र कलुष-जजंर है वह जाति । नरक-दुख का वह बना निकेत | स्वगं जैसी निसमे थी शान्ति ॥ ( ४ ) देख यह कोन हुआ कटि-चद्ध । किया किस जन ने कमे-महान । हो सका सत्य-भाव से कौन । त्याग-बलि-बेदी पर बलि-दन ॥ ( ५ जहां थे साम्प्र-बाद्‌ के सिद्ध । जहा का था स्वतंत्रता-मंत्र । बहन्‌ कर पराधीनता इत्ति । बहा का जन-जन है परतत्र ॥ ( ६ ) पर इसे कौन सका च्रवलोक । आज भी निद्रा हुई न मग । त्याग-भूमि [ खागभृमि न संकर-पोत कर सकी भग्न । त्याग-जल-निधि-उत्ताल-तर'ग ॥ ( ७ ) लोकप्रियता है निदलित-प्राय । हे प्रबल-मूत विविध-परिताप । आये-गौरव-रवि है. गत-तेज । काल-कवलित है. कीति-कलाप ॥। ( ८ 2) खड़े हो सके न तो भी कान। गर्म हो सका न तो भी रक्त | रगो मे सकी न बिजली दौड | हुआ उर शतधा नहीं बिभक्तं ॥ ( ९ ) हुआ खंडित मणि-मंडित क्रीट । हो गया चिन्न र-चय-हार । लिन गया पारस बहु-श्रम-प्राप्त । लटा कनकाचल-सम-संभार ॥ ( १० ) कर सका कौन श्रात्म-उत्घगं । किया किंसन उर-रक्त-प्रदान । जाति देकर कपाल की भाल । कर सकी कव शिव का सम्मान ॥ ( ११ ) देश जिससे बनता है स्वगं । कहाँ उर में है वह अनुराग ? त्यागियों का सुनते हैं नाम । कहाँ है त्याग-भूमि मे त्याग ॥ अयोध्यासिद उपाध्याय




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