भ्रमोच्छेदन | Bhramochchhedan
श्रेणी : साहित्य / Literature, हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रमोच्छेदन । १२
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“या न्यूनाधिक यद भो शब्द उन्होने लगा दिया है ।
तुरसोदासजौ कौ प्रख्याति का काल १६२० से ऊपर
श्रसुसान से जाना जाता है, क्योंकि १६८० में तो वे
साकेत धाम वो हौ चले गये ये । सूरदासजौ का जन्म
१५४० मान लेने से' तुलसीदास जो कौ प्रख्याति के समय
१६३० में उनको आयु <° वषं वौ होतो है। पर भारः
न्दु ने प्रौ सूरदास जौ वौ श्रायु ८० वषं को लिखो
है| इस अस्पो को १५५० में जोड़ने से' १९६३० में तुल-
सोदासजौ का मिलाप संभव को सक्ता है। इसलिये € °
कौ आयु और ४० क्रा जन्म दोनों छो असंभव मालूम
देते हैं पर इसी दिसाव से' १४५५० का जन्म मानने पर
३० या ३४ को आयु के समय संवत ८० या ८६ में 'शिप्य
होकर पद बनाने का आरंभ माना जा सक्ता है। और
इसो भागड़े को सोचकर भारतन्दुजो ने भी न्यू नाधिक
शब्द लिखा है।
अब- विद्वान पाठक 'हो विचारें कि गोखामौजो का
लिखना कहाँतक संगत है । अन्तिम छिसाव सैं तो
सूरदप्स जो का समय वहत रहौ पौरे श्राता है । जब
चौरासो पद के वनाने वाले वोस वर्ष के हो ' गये छॉँगे'
तव सूरदासजों का जन्म श्रा हीमा श्रौर 'जब सूरदास
जो शिष्य होकर पद वनाते होगे, उससे २५ वृष प्रथम
हो चौरासो पद मंदिये मे गाये जाते होंगे ।
२
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