समपण पत्र | sampan patra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
samparn patra  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
च शाङ्रविजय-नारक । १९ इन्द्र -८ आगिवटकर ›) दे भक्तभय भञ्जन ! करुणासागर ! आप रातदिन देवताओं के दिताचन्तन में मप्र हते हैं , इस समय देवताओं के उपर संकट पडा दे, भूढोक में वोद्ध चढे उन्मत्त दोगये ईं, अनादि वेदमाभेका तिरस्कार कर्त दे, श्रो्तकमे न होचराः ब्रह्मण भी स्नान सध्या जादि षड्क्मा को छोडकर उस मतम दही जननेरग ; अधिक क्या करट स्ये नारापण को निलय एक भी अज्ञान मिकने का सपय ' आगया , आजकल के राजे भी उसी ' भतपर आरूद दोगयें ;, वोद्धों भें घड़े २ पण्डित होगये , संश्कत में बड़े न अन्थ लिखकर चेदमाग का खंडन करते दें चोद्ध कार्पालिक, दिंगम्बर आदि अनेकों नास्तिकों के कारण वेदिकः मा्भेतो चन्दही हागया+अवभ्रूरोकष्तप ज्ञान चेराग्यआदि कीतो चार्वाही किको सुष्ावेगी १ रेली दक्षामं यज्ञयाग आदि श्ान्तिक पौष्टिक करें वंन्द होजानेसे इन अनाथ देवता आओ का स्वगेठछोक में जीवन केसे हो ! सब देवता विकक दो रहे हैं इस कारणदी मिरुकर भापके चरणकमलों की चरण आये ईैं(पसाकइ नमस्कार कर पौन होकर वेठते हैं ) महा °--इन्द्रदेव । धकषडाओ मत ,नास्तिक बहुत षः अव शीघ्री वह अपने कर्मोका फर पा्बेगे, पमी किततनेही दिनों से इस दिष्ार मं हं । यद्यपि, स्वामिका्तिकेय, गणे _ और पावेती मुझे परममिय हैं परन्तु ज्ञानमाग पक्षको उनसे भी प्यारा हैं, उसका नादा करने वाले चोद्धों उद्धतपना जब भें बहत दिनों न्दी रने्दंगा, यदि अवी अवतार धार में ज्ञानमाग की स्थापना करनेकर्गू तो नहीं दोसकेगी ; क्योंकि इससमय सकल माणी कमत्रष्ट दोनेके कारण ज्ञानांपद्श के पान नद रहे हैं, इसल्ठिये सब मागोके मूल कमेमागे की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now