भारत की दशा | Bharat Ke Dasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ भारतकी दा `. - (१९) से भकारे भा-जौर देख तू कहां जा-रहा है-अपने आदर्च॑से कितना गिर गया है-जिस धरम्पके- स्यि हमारे पूजानि अतुंखनीय त्याग -किया- _ अपने प्राण होम दिये -आजीवन पवतो, गुफाभ ओर. जङ्गलोकी राख छानी, वही धम्म आज खीभक्त स्वाथ पुजारी-पेटाधिरयोकी -इन्द्ियकिप् व्यभिचारियोंफ सामने हाथ जोड़े खड़ा है-सत्य और धम्मेंका सचमुच खून किया जा रहा है, और हम अधर्म्मंको घर्म समझ गवसे फूछे नहीं समाते हैं । जिस तरह बरसातमें कीड़े मकोड़ों और मेढकोंकी संख्या वृद्धि होती है-उसीप्रक्वार हमारे देशमें इस कछिकालमें नकली साधुओं, 'मंहात्माओं, .सतोंकी और भिखारियाकी भरमार हो रही है-एक अक्षर _ पढ़े नहीं-बीसतककी गिनती जानते नहीं-बाप दादोंसे बेईमानी मक्कारी रौर जालसाजी विदवासघातीसे पेट भरते आनेवाठे अपने माता-पिता-- : धर्मगुरुओसे द्रोद कर अपनेको धर्मगुरु मकारा करके स्वभ पूजते पुजातिसे बंनरहे हैं। के - है विदवंभर कालीविश्वनाथ ! जगत्‌ पिता-विश्वके आधार तुम्हारी 'जय होय, दादाजीमद्दाराज आपकी जय होय, हे' कालोंके कारू महकाल -जापकी जेय होय, सप्त पुरियोँमे श्रेष्ठ काशीपुरी, उज्ञेनपुरीके उपस्थित हिन्दूमण्डल-पंचगौड़-पंचद्राविड़ “ब्रह्म जानाति ब्राह्मण” वणेधम्मेवर्ण- आश्रमी प्रेमी समाज, मनुष्यसमाजके सनातनी विद्वानों सुझ पागलदादा- द्रबारके एक विदूषक कुत्तेकी भीं मौपर, कुछ समयके लिये कोयरोंकी 'कूक और हूंसॉकी किछोडोंमें कौवेंकी कांव कांवकी इस ओर ध्यान हैंगे.। ` ~~ सारतके भारतियोंने-उपस्थित सज्जनोंने सांइखेड़ेवाले दादाके नामकों ` अवश्य सुना होगा ( एक वैसे उजेनमे ही उपस्थित हैँ ) यह कौन हैं ` वेदी जने, रोकोक्तिसे परमहंस, भवधूत, , योगीधूनीवाङे दादा छष्णा- #




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