केनोपनिषत | Kenopnishad (ii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्व
पक
सम
(५ )
सिद्ध हो सकता है ? नद्य हो सकता है, क्योकि, चाजसनेयक
उपनिषद्दु में कम सद्दित शान का झान्य प्रकार फल कहा गया
है-मारम्भ में “ हमें स्त्री हो ” पेसा प्रारम्भ करके “पुत्र के
द्वारा यद लोक जय करने योग्य है छन्य के के द्वारा नद्दीं। कर्म
| के दारा पितृलोक, चिदया के डाय देवलोक लाभ हो सकता
है! » इस धकार से कर्म सहित ज्ञान को लोक्य लाम का
कारण कहा गयां है श्रात्मलाम का कारण नहीं । पुनः उसी
उपनिषद् मे सन्न्यास ्रहण का हेतु कहा गया है कि, '' हम
लोग उस प्रज्ञा ( सन्तान ) द्वारा क्या करेंगे, जिससे श्रात्म
लोक नहीं प्राप्त होता है ।” इसका तात्पय्य यह है कि, प्रजा, कर्म
श्रोर क्ंसंयुक्त विद्यां ये तीनो यथा कम मनुष्यलोक, पितृ-
लोक श्रौर देवलोकभ्राक्तिके साधन है, साध्य-साधन-
विशिष्ट ्ननित्य ये लोकय हमारे शरभीष्ट नहीं है, हमा
आत्मा स्वभाव से ही श्रज्ञर, श्रमर, अस्मृत, श्रभय श्रोर
नित्य है, बह कमं दारा बृद्धिहासर को नहीं प्राप्त होती
है। इस कारण कर्म से हमें कोई प्रयोजन नहीं है । हमारा
श्रभीएर वह शात्मा नित्य होने से झविद्यानिवृत्ति ॐे सिवाय
न्य साधन द्वारा प्रतिपाद्य नहीं है। इस कारण जीच-ब्रह्म
की पकता समझ कर सब इच्छा त्याग करके संन्यास अहण
अवश्य कर्तव्य है ।
जीवन्रह्मत्ववोध कर्म का सम्पूर्णरूप से विरोधी है, इस
कारण सी झात्मज्ञान के साथ कम का समुच्चय नहीं हो
सकता है, क्योकि, कर्मासुप्रान में कारक-मेद तथा स्वगेलोकादि
फल-मेद्-कश्ान रहना श्रावश्यक होता है श्ौर आात्मविपयक
ज्ञान म चह समस्त भेद्वुद्धि छुप्त दोजाती है, सुतरां इन
दोनो की एक साथ झवस्थिति झसम्भव है । विशेपतः
ज्यात्मविक्ञान वस्तुप्रधान श्र्थात् बस्तु की सत्यताके अच-
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