उदाहरनमाला | Udaharanmala Part-3

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Udaharanmala Part-3 by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदाह्रणमाचा < शिक्षक की इस बात ने तो राजा का आश्चयं श्रौर भी वढा दिया । वह विचारने लगा, कि यह्‌ भी कंसा विचिक्र आदमी रहै, जो मरने से भय नही करता है ? उसने शिक्षक की वात के उत्तर मे कहा कि क्या तुमको श्रपने अपराध का पता नही है ? तुमने कूमार को वड़ी निर्दयतापूवेक पीट रौर कोठरी मे बन्द कर दिया, फिर श्रपराघ प्ते हौ राजा के उत्तर के प्रत्युत्तर मे शिक्षक ने कहा कि मैंने तो कुमार को नही मारा । शिक्षक की यह्‌ बात सुनकर राजा का श्राष्च्यं को मे परिणत हो गया । वह, शिक्षक तथा वहा पर उपस्थित लोगो को कमार का शरीर दिख कर कहने लगा कि मैं शिक्षक की अब तक की वात से तो प्रसन्न हुआ था, परन्तु श्रव यह मरने के भय से भूठ बोलता है देखो, इसके शरीर पर प्रव तक मार के चिह्न मौजूद है, फिर भी यह कहता है कि नही मारा । राजा ने कुमार के मु ह से घटना की समस्त बातें कहलवाई । सव लोग शिक्षक की निन्दा करते हुए कहने लगे कि वास्तव के इसने फासी काही काम किया है ! शिक्षक ने कहा कि मैंने इसे मारा जरा भी नही है, जिसे श्राप मार कहते हैं, वह तो मैंने शिक्षा दी है । यदि भ्िक्षा देने के पुरस्कारमे दही भ्राप मुभे फासी दिलवाते है तो यह्‌ श्रापको इच्छा । मुभे प्राप्ते इतनी वात कहनी थी, रव श्राप मुभे फासी लगवा दीजिये । शिक्षक की वात ने तो. सभी को श्राश्चर्य में डाल दिया । राजा ने शिक्षक से कहा कि तुम्हारी इस बात का




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