भूरसुन्दरी बोध विनोद | Bhursundari Bodh Vinod
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्रथम प्रकरण ! ५.
जाता है यी ्षायोपशमिक खम्यक्तव रूपमे परिणत दो जाता! हे,
इस अवस्था में प्रकृतियाँ वत्तेमान काल में उदय को प्राप्न नदीं होती है,
किन्तु सत्ता रूप में रहती हैं,* जैसे गदले पानी को बारंबार नितारने से
बह ऊपर से निर्मल दीखता है, परन्तु उसके नीचे गदलापन घना
रहता है, इसी रकार उपशम भाव के योग से तो शुद्धता होती दै.परंतु
सातों प्रकृतियों का मैल सत्ता रूप में विद्यमान रहता है ।
क्तायोपशमिक ' सम्यक्त्व मे सात श्रकृतिर्यो मे से ङ प्रक-
तियो का क्षय हो जाता दै तथा ऊुछ प्रकृतियों का उपशम हो जाता
है, सास्वादान सम्यक्त्व फो भी क्षायोपशामिक सम्यक्त्व का ही अंश
जानना चाहिये ।
मिथ्यात्त्व मोहनी प्रकृति का दल गाद् दोता है, इसकी उदय में
आई हुई वर्गणा का क्षय हो जाने पर कुछ वर्गणा सत्ता में विद्यमान
रदती है तथो कद्ध वगणा उदय भाव में रददती है, इस अवस्था में
मिथ्यात्त्वी पुरुष नितारे हुए जल के समान ऊपर से तो उजला दीखतां
है, परंतु मिथ्यात्व के उदयःसे उसको देव शुरु और घर्म की पदिचान
नहीं होती है, ऐसे पुरुष को कुगुरु, कुदेव ओर कुधर्म प्रिय लगता है,
शुद्ध घर्म से वह उपरत रददता है, ऐसे पुरुष में मिथ्यात््त मोदनी प्रकृति
का योग जानना चाहिये, वास्तव में यदद ( सिध्यात्व सोददनी ) प्रेति
सम्यक्त्व की आवरण रूप रै ।
१--जेसे साबुन भादि के योगसे पस्प्र फा मेल क्ट जाता ३, सी प्रकार
से उपशम भाव को प्राप्त हुई सातों प्रकृतियों में से कुछ प्रकृतियों का उपयोगी
साधन विशेष से चषय दो जाने पर चायोपशमिक सम्यक्त्व दो जाता है ।
२--तात्पयं यद दै कि चार श्रनन्ताजुवन्धिनी, मिथ्याह्व मोहनी, मिश्र
मोदनी, तया घम्यक्त्व मोहनी, ये सात प्रकृतियां उदय भाव में न रद्द कर केवल
सत्ता रुप में रदती हैं ।
१--इप-सम्यक्त्व के पर्न्यो मे प्रथक् २ भङ्ग ( मगि ) बताये शये हैं
अ--ंकने के समान है । |
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