जैन महाभारत | Jain Mahabharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
620
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जेन महाभारत ७
मे रत रहने से जीव का कभी कल्याण नही होता यहु निश्चय समस
पाण्डु नृप कु देर तक विचार मग्न रहे रौर फिर कुछ निर्णय
करके श्रपने श्रापसे ही वोले -- श्रच तक मोहुके फल्देमे पड़ा
-हुश्रा था, म्रव मँ प्रति वृद्ध हुग्रा ! इस समयर्मै श्रात्म सुख से .मृखी
हु। मुझे सन्तोप है ग्रौर श्रात्मा के सच्वे सुख का अभिमान है ।
श्रव सुभे-स्त्री प्रेम से कोई प्रयोजन नहीं ।
कामी पुरुष विपय भोगो मे तन्मय हो कर शझ्रपने भोजन को
श्रपने विवेक को, वैभव श्रौर बडप्पन को, यहा तक कि जीतव्य
को छोड देते है, कमी राजा झ्रपने राज्य धर्म को भूल जाते है,
उन्हें अपने कर्तव्य, न्यम्य श्रन्याय, का भी ध्यान नहीं रहता, वे
मिथ्यात्व के कारण श्रफरणीय काये भी करने योग्य वना लेतेहै।
यह उनकी गिरावट की चरम सीमा श्रा जाती है । पर कामासक्त
'होने का कारण हमारा साहित्य भी है । साहित्यकार भी कामासक्त
हो कर साहित्य को मानव जाति को नष्ट कर डालने योग्य रच
डालते हैं। वे पेट के लिए विपयानुराणियों को प्रसन्न एव श्रानन्दित
करने के लिए कामोत्तेजक कविताएं कह. डालते है, जिनका सरे
समाज पर प्रभाव पडता है पर जिस व्यक्ति की हृदय की भ्रखिं
खुली है वह जानता है कि जिन कुचों को सुवर्ण के कलग अथवा
श्रमृत के दो घड बताया गया है वे मांस के दो पिड है। जो स्त्री
मुख इलेष्क-खकार श्रौर शूक का घर है, उसको उपमा दी जाती
पूर्ण चन्द्रमा की, इसीलिए स्त्रियों को चन्द्र मुखी कहा जत्ता है ।
सीधे सीधे नेत्रो को, जहाँ निद्रा उचटने के पाध्चात मल धृणास्पद
मल ही मिलता है, मृगलोचन कह कर प्रणक्षा की जाती है। इसी
प्रकार स्त्री क श्नन्य श्रगों को बडी सुन्दर वस्तुग्रो से उपमा दी जाती
है, इस प्रका< पाठ्कोके हृदय मे कामाग्नि प्रज्वलित हौ जाती
है। पाण्ड राजा सोचता है वास्तव मे यह हमारी श्रे, श्रीर्
हमारे भाव है जिसे श्रच्छा समभे उसकी हुर चुराई को भी भलाई
के रुप मे देखते हैं। स्त्री का रुप देखकर बेकार ही उत्तेजना झा
जाती है। वास्तव में वह तो सात धातुओं का पिड है, नथ्वर हैं
माया का स्थान है, फिर भी तू सगान्घ हो कर उसमें आसक्ति
फरता हैं, श्ाथ्चर्य है तेरी घुद्धि पर ,” उमे पने श्रव तवः के
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