चन्द्रकान्ता सननति | Chandar Kanta Santti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
339
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सोलहवा हिस्खा २५
श्रादमी परिडत्तजी को घखुवी जानते थे भौर उन पर विश्वास
करते थे, इसी समथ चलने के लिये तुरत तैयार हा गये ओर
कोरु के दाइर निकल कर छनकं ददे पील रवाना हुए । जव
मकान के वार निकरे तो ददोजे के दोनों तरफ कई सादमियों
को टल्तते हुए देखा सगर अधेरी रात शने रौरं जल्दी जल्दी निकल
नागते की घुन मे लगे रहने के कारण मै उन ज्लोगों को पटिचान
त सी एस किय नदी कह सकती {ॐ वे लोग गटाधेरसिह् के
झादसी थे या किसी दूसरे के । उस 'ादमियों ने दस लोगो से
ङश नदी पृद्ा घौर हम लोग चिना रुकावट के परिडतजी के
पीछे पीछे रवाना हुए । थोडी दूर जा कर दो चरादमी श्रौर मिले,
एक के हाथ में मशाल थी 'झौर दूसरे के दाथ में नगी तलवार ।
न सन्दे वे दोनों शादी सायाप्रसाद के नीकरथेजो हुक्म
पाते ही इस लोगो के 'ागे आगे रवाना हुए। इस पहाड़ी स
जीच तरते का रास्ता वहत दी पेवीला रौर पथरोला धा।
` द्यपि हम टोनो श्रादमी एक दूफे उस रास्ते को देख चुके ध्र
परार फिर भी किसी के रा दिखाये चिना उस रास्ते से
।नकत्त जाना कठिन ही नहीं वल्कि सम्भव था। एक ता इस
लोग माधाप्रसाद के पीछ, पीछे जा रहे थे दूखरे मशाल की
राइानी साथ थी इसलिये शीघ्रता से इम लाग पद्दाढ़ी के नीचे
. उतर छाये 'झौर परिडतजी की पाज्ञाचुसार दाहिनी तरफ घूम
कर जंगल ही जगल 'वलने लगे । सवेरा होते ोते तक इमलाग
` एक खुले मंदान में पहुँच और ना एक छोटा सा थागीया नजर
' डा । परिडतजी ने दम दानों से कद्दा कि तुम लोग बहुत थक
गई हो धस लिये थोढ़ी देर तक इस यायसीचे में आराम कर लो
तब तक इस शोग सवारी का वन्दोध्स्त करत ई जिसमें राज
ही टुस राजा गोपालसिद्द के पास पहुँच जाओ |
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