जहाँगीर का आत्मचरित | Jahangir Ka Atmacharita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) यी घटनाश्रों को लिखने मे लगाया गया था। संभवदै कि ऐसे श्रौर भी लेखक रहे हो जिनके कारण भिन्न भिन्न संस्करण सिलते हैं। एेड- रसन का सस्करणु चार वर्पों तक ही काद शरोर इसकी श्रलेक प्रतियाँ तैयार कराकर जदहोगीर ने स्वयं वितरिंत क्रियाया) चरतः यट संस्करणं मूल लेखक-सम्मतत है श्रौर प्रामाणिक है । प्राइस के संस्करण को ऐसी संमति या प्रामाखणिकता प्राप्त नहीं है इस प्रकार के विवेचन से ज्ञात होता हैं कि जहांगीर के श्रात्म- चरित की तीन प्रकार की प्रतिय प्राप्त । प्रथम मे केवल वार्ट वपं तक का इत्तात है । यद्द सरलता से लिखी गई हें आर इसपर सत्यता तथा गमीरता की छाप हे, जो सम्रा ट-लेखक के उपयुक्त दे चरत. विजय मानव दें । इस पुस्तक के प्र+ ५३६ पर लिखा है कि 'जहोंगोरनामा के चारह वर्ष का त्रत्तात समाप्त हो चुका है इसलिए हमसे श्यने निजी पुस्तकालय के लेखकों को श्राज्ञा टा कि इनकी एक जिल्द वनां सौर इनकी कई प्रतिलिपियॉँ प्रस्तुत बरें ।” इस उद्धहरणु से स्य ध्वनि निकली है कि राग का कार्य का नहीं हैं. प्रत्युत्‌ चल रद है तर केवल प्रथम जिल्द बारह वर्षों के इचात की श्रलग चना ली गई टे 1 पटली प्रति छक्रवार ८ शदरिवर सन्‌ १०२७ दि० ( सावन सुदी ८ स० १५५ के लगभग तैयार हुई श्यौर शाहजहों को ढी गई थी | उस कोटिको प्रति विगेप मिलती र । दृसरे प्रकार की प्रति बह? जिसका श्रनुवाद पाइस ने किया है। इने प्रह्व वपं तक का चरृत्तात श्राया हे, जिनमे प्रथमसे बहत कं निकाल दिया रया हैं; घटाया तथा विस्तार प्रिपाद््रादे श्रौर वटूतसीवातोको सनमाना रूप दे दिया गया दे । इन कारणों से यह प्रामाशिक्ता की कोटि मे नहीं श्राती श्रोर जाली सिद्ध होती दे । इसके लिए केवल एक उदाइदरण दिया जाताद्‌] जरों जहाँगीर ने अपने पिता श्यकवर के रूप, रंग; स्वभाव य्रादि का कुछ वर्सुन किया है चही प्राइस के श्रनुवाद में उसके एऐश्वर्य




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