सामाजिक क्रांति और भूदान | Samajik Kranti Aur Bhudan

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Samajik Kranti Aur Bhudan by जे बी कृपलानी - J.B . Krapalani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुदान-यस. क्राम्ति या उर्कास्ति १३ विनोबर का प्रयत्न क्या विनोदा अपने सूदान-आत्दोलन से प्रचलित मूल्यों में परिवर्तन कर रहे हूं? जिन्होंने उनके काम को देखा हे और जिच वृत्ति से वहकाम होता है, उस चृत्ति को समझा हैँ, उनके मन में विनोवा के आन्दोलन कौ न्नातिकारिता के चिपयं मे कोई सदेह नही रहं सक्ता! हर जगह चै इस विचार का प्रतिपादन करते हे कि जमीन की मालकियत पाप है सौर जमीन हवा तथा पानी की तरह सबको मुफ्त मे मिलनी चाहिए । परन्तु जिस प्रकार पानी का नियत्रण सामाजिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है, उसी तरह भूमि का उपयोग सी समाज के लिए होना चाहिए} साध-साप वे यह भी जागहुपवेक कहते हे कि सभी सपत्ति ससाज की थात्ती समझ्नी जानी चाहिए और उसका उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए होना चाहिए । इसके अलावा वे उन गाधी-प्रणीत्त मूल्यों का सजीवन कर हे हे जिनके आधुनिक सत्ता, लल्सा और द्रव्य-लोभ के उन्माद में सो जाने दा डर था । उन्होंने यह भी दिखला दिया हैं कि व्यक्तिगत उदाहरण से, राज्य-चारिष्य से और प्रयत्न से कितना बडा समाज-हित हो सकता है, चाहे सता वितनी हो उदासीन क्यो न हो * वे जिस तरीके से भूमि-नमस्या हृल करने की कोरिया कर रहे है, उससे यह सावित होता हूं कि दूसरी समस्याएं भी उद्दी पद्धति से शाविपूर्वेक नेतिकष मत-परिवर्तन लौर हुदय-परिवर्तेन के द्वारा हल की जा सकती ह। वे जमीदारी के विरोध में ऐसा प्रदल लोक्मत दना रहे हैं कि उसके कारण किसी भी प्रगतिणील सरकार के लिए राजनतिक सौर कानूनी कदम उठाना आसान हो जायया ३ मु विष्दास ति पूल्सि के हारा दमनकारी उपायों से काम लेने के एफ 2 | + क ॐ © न्ये ददले--जिनसें न तो ईमानदारी होती हे, न सयम--अगर गराच्खोरी दा इलारू नतिव मत-प्रचार स्मर मत-परिवतेन से किया साय, तो अधिकः चिरस्पायौ सौर दुरामी परिणाम निन्ल्ये। श्री विनोबा देहानौ हल्को एव एसो सेना उड र रहे हं जिनका प्रचलति समाङ-र्वना के प्रति ङन्त्ोप एन प्रचड शाति करके रहेगा । ैद र 41




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