कौटिल्य के आर्थिक विचार | Kautilya Ke Arthik Vichaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ३ यह्‌ ग्रन्थ स्वयं श्राचायं का षनाया हुआ नहीं है, वरन्‌ उखके शिष्यो में से किसी ने बनाया है । यह श्रनुमान खक नदीं दै, कारण कि श्रनेक प्राचीन लेखकों की यद्दी शैली रही है कि श्रपना मत झ्पने नाम से ही दर्शाया जाय | हिन्दी के श्रनेक दोद्दो श्रौर कुंडलियों में उनके स्चयिता का नाम आता है । फिर उस समय तो उसमें सन्देद करने का कोई स्थान ही नहीं रददता, जब इम यदद देखते हैं कि “शथंशास्र' के प्रथम झषिकरण के प्रथम श्र्याय के शन्तिक श्लोक में; तथा द्दितीय श्रधि- करण के दसवें श्रध्यायके श्रन्तमें भी इसके अ्न्थकर्ता का उल्लेख कौटल्यः के नामसेही हृश्रादहै। हो? न्थ की समाप्ति पर विप्णुगुप् नाम भी दिया गया है] नीतिषार कै रचयिता तथा कामन्दक नीतिसार के लेखक ने आचाय के लिए 'विष्णुगुम' नाम का ही प्रयोग किया है । कौटल्य नामके विषय में कहा जातादहै कि यह च्राचा्य॑का गोच्रज नाम है | वह कुटल गोत्रीय था । सम्भव है, इसीलिए श्राचाय ने अपने लिए इस सामान्य नाम का श्धिक व्यवहार किया है। यद बता संकना कठिन है कि इस गोत्रवाले इस समय भारतवर्ष के किस भाग में पाए जाते हैं । ग्रसु, धीरे-धीरे श्राचार्थ के 'विष्णुगुतत नाम का प्रचार घट गया श्रौर भ्कोरल्य' ही व्यवहार में श्राने लगा । श्र्थशास्रज्नों को छोड़कर अन्य इतिदासज्ञ, पुराणकार, टीकाकार नाटककार श्रादि अन्थ लेखक भी, जो झाचाये से बहुत काल पीछे नहीं हुए, इस नाम का प्रयोग करने लगे । 'मुद्रारादत* के रचयिता कविवर विशाखदत्त जी लैसे इने-गिने विशेषज्ञों के शिवाय श्रौर सत्र लेखक श्राचाय के विष्णुगुप्त नाम को मूल गए । शरी° विशाखदत्त नी ने विषु के पिता का नाम शिवगुप्त लिखा है । चाशुक्य--श्राचार्य ने श्रपने श्रापको; श्चथवा उसके निकयवर्ती लेखकों ने उसे चाणक्य नदीं कदा, यद्यपि प्राचीन तथा श्रवांचीन सादित्य में यद नाम भी कौटल्य का ही सिद्ध करनेवाले श्रनेक उद्धरण मिलते =




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