नव-प्रभात | Nava-Parbhat

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Nava-Parbhat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अंक १३३ याद किया है । आज हमारे नगर-कोप्र पर चार डाकुर्ओ ने हमला किया था, परन्तु रक्षको की सतर्कता कै कारण उनका प्रयास विफल हो गया तथा वे वन्दी वना लिये यये हैं । मधुसूदन ‡ नगर्रेष्ठजी करो हमारी तरफ से अभिवादन ऊर पश्चात्‌ कदो कि हम थीघ्रातिदीघ्र पहुँच रहे है । ( सब में दरुचल मच जाती है, सबका प्रस्थान ) पटासेप ततीय दय [ स्यान ; नगर-रक्षक सैन्य कां कार्याख्य 1 प्रांगण मे प्रधान प्रषन्धक सेण्ट जेराट्ड एवं अन्य दो प्रवन्धक (वजीर खौ और मनोहर ) तथा कुछ नगर-रक्षक बैठे हैं । समीप ही बन्दी क्रिये गये चार डाकू खद! प्रधान प्रबन्धक एवं अन्य प्रचन्धर्को के नीच चरु रहे वार्तालाप को सभी सुच रहे हैं। ] सेन्ट जेराल्ड ‡ ( चिन्तित मुद्रा में ) आज विद्व के सम्य कहे जानेवाले राष्ट्रों के मध्य विध्वसक अख्त्रों के निर्माण करने की होड़ लगी है | पता नहीं कि विस्फोट की चिनगारी कव सुलग जाय और मानव की वैमब्रद्याली सम्यता और उसका गौरवपूर्ण इतिहास, जिसने आज चन्द्रलोक में भी अपनी प्रतिभा की पताका फहरा दी है, इस घरा से नामशेष हो जाय । विद्व-मानस क्षुब्ध ओर त्रस्त हो उठा है । एक राट दूसरे राके प्रति षणा तथा शंका की भावना रखता है । वजीर खों क्या यदह सच है कि जो दो वीर अग्रेज युवक भारत आये थे; वे क्रिसमस द्वीप को सत्याग्रह के लिए ना रहे हैं, जहाँ ब्रिटेन अणु-परीक्षण करनेवाला है ?




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