काव्य विभा | Kavya Vibha

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Kavya Vibha by नेमीचन्द धीमास - Nemichand Dheemal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) बवि सादूम होता है” । गम्सवत सहायवि पुष्पदस्त को श्री सेगर ने भपर्यात्त जानरारी के धाधार पर पुप माट माना है । वस्तुत हिग्दी साहित्य के इतिहास-लेसकी में प्रामाणिक सामग्री जुटाकर उसके शोध नामपादन वा परिश्रमपूर्ण कार्य भाचार्य शुवल ने त्रिया था, इसलिए बाद के समय में उन्ही घी वात को भ्राप्त-वाव्य मानकर दोहरानैकी प्रवृत्ति चतौ प्रां } रिन्तु, एद तो शुक जी ङे समय तक्‌ प्रपभशकी पर्मानि गामप्री प्रवाश में नहीं भाई थी भौर टूसरे शुवलजी को जैन प्रन्पो मे कोग्यत्य बी पपेशा घामिकता झधिक दिसाई दी, इसलिये उन्होंने श्रा्दिवाल का समय निप्र भपने ढंग से दिया । इधर भाचार्य हजारी प्रसाद द्िवेदी ने हिन्दी झादिवाल पर छापे भ्ावरण को हटाने का प्रभूत परिथम किया है । उनके अनुसार “यह बाल नाना हृष्टियों से भ्रत्यस्त सहत्वपूर्ण है । शायद ही भारतवर्ष मे साहित्य के इतिहास में इतने विरोधों श्रौर स्वतोध्याधातो कायुगक्रभी पाया होगा । 'यह काल भारतीय विचारों के मंथन का काल है भर इसीलिप भ्रत्यस्त महत्त्वपूर्ण है ।” महापण्डित राहुल साकृत्यायन ने भी हिन्दी घौर झपत्र श के इस सपिस्थल की कड़ी बठाते हुये लिखा है “अपन श मे बवियों को विस्मरण करना हमारे लिये हानि की वस्तु होगी । महीं कवि हिग्दी बाव्य-धारा के प्रथम खप्टा थे 1 * “उन्होंने एक योग्य पुत्र की तरह हमारे बाव्यदोत्र में नया सृजन किया है, नये चमत्कार, नये भाव पैदा किये, यह स्वयमू झादि की कविताओं से भ्रच्दी तरह से मालूम हो जायगा ।” द्रा सित विवेचन का श्रभिप्राय यह है कि हिस्दी साहित्य के इतिहाम को लिसते समय इस बात का ध्यान रषा जाना चाहिये कि हिन्दी म पूवं पीठिवा भ्पधश है भौर इसे विज्खिन्न करके नदी देखा जा सक्ता) इसोलिये इस काल के धन्तगंत सिद्ध-माहित्य, नाथ-साहित्य, जैन साहित्य, वीर- गाधात्मक तथा चारण-साहित्य सभी को चालोच्य माना जाना चाहिये । यहाँ इसी हप्टि से इस काल के सादित्य के इतिहास पर सक्षिप्त प्रकाश शालने का प्रयत क्रिया जायगा ।




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