घुमक्कड़ - शास्त्र | Dhumakad Shastr

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Dhumakad Shastr by राहुल संकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झपातों घुमदर-स्शासा | के दए को डिंप सरद प्रशठ दिया, इसे हतिदास पमि डरता स्पष्ट चदिव नहीं पति, िस्तु संगोश्न्पुसर्रूदों की करामातों को यो इस अपपी हर यारते टै । बारूद, लोग, कॉंगण, दायरा, दिस्दरशक, चरमा पी 'टौजें थीं, थिस्ट्रीन पर्पिस में दिशाननुग छा झारस्स कराप।, चौ इन तों छो दा से थानेदलि मंगोल पुमण्कड़ ये । बोसक्यस सौर यास्डो दन्दामा दो पुमरुषद दो थे, जिन्होंने एरिषमी देयो के चागे दहइसे का रास्ता रोल । घमेरिडा धपिकतर मि्वनन्सा पहा था। पएविया दे कूरनसंट्रदों को पुमररुदन्पर्म की महिमा भूर, दमि टस्टोने घसरिका पर अपनी मंदी नदी था । दो शादियों पदले तर सार लिया सजी पढ़ा था । पीन चौर सारव को सम्पता को बढ़ा राधे टू, सेट इंगको इतनी अल नहीं धा, दधि डामर बां अपना सदा गाई पति । धाम धपने ००६० बोर की जमसंख्या के मार से भारत झीर चीन की भूमि दंयी मा रही दै, और चाम्द्र शिया में एफ रूरोई भी आदमी महीं हैं। भागे एुविवायिपों के लिए आरड्रे लिया का द्वार पन्द है, सेडिस दो सदी पदमे बह्मा दाष लो चीज थी । बयों मारत चर दीन झास्ट्र लिया को धपा संपति भौर घमित सूसि से वंचित र गएं ह इसीलिए कि चटु युमरुष्द्-पम मेविपुयय, उमे सूख पुरे थे । हाँ, मैं इसे मूत्रताष्ो दला, श्यो भी समय भारत भौर चीनने ददप नामी पुमकरुढ़ सैंदा किये । थे सारतीय पुमनकषेषी थे, जिन्होंने ददिय-प्रच में कंका, वर्मा, सज्नापा, यवद्वीप, स्पाम, कम्बोत, चम्पा, योर्नियों धौर सेजीयीज ही नहीं; किलिपाइनम तक का धावा माराय, चीर एक समप हो जान पदा दि न्यूजीलेद और श्वास्ट्रे दिया भी दृदसर्‌ मारत षा धग यने षेद! लेकिन ष्य मंइकता ठेरा सप्यामाश दो | इस देर के युदूधुझों ने उपदेश करना शुरू किया, कि समुस्द्र के खारे पानी धौर दिन्दू-घर्म में दवा मर है, उसके छुनेमात्र से बद भमक फी पुवल्ती की तरद गल जायगा 1 इतना




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