प्रायोगिक कार्यानुभव | Prayogik Karyanubhav (sikho-kamao)

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Prayogik Karyanubhav (sikho-kamao) by मोहनलाल पालीवाल - Mohanlal Palival

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कार्यानुमव दे करने की कोई कल्पना नहीं है भ्रपितु उत्पादक को वैज्ञानिक विधि से करने के लिए पर्याप्त झावश्यक शाद यथा स्थान तथा यथा स्तर देने की व्यवस्वा करनी चाहिए । (२) कार्षानुभव त्तया हस्त कला-- हस्तकला शिक्षण के भन्तर्गत दिसी हस्तकला विशेष के सिद्धात तथां श्रयोग सिखाये जाते हैं । इस प्रकार हस्तकला में छात्र का प्रशिक्षण भ्रघिक क्रमबद्ध एव एक विषय तक ही सीमित होता है । इसके विपरीत कार्थानुमव किसी हस्त- कला विशेष थी क्रमवद्ध शिक्षा नहीं है । कार्पानुमव में हम्तकला भी हो सकती है । (३) कार्यानुभव एव प्रिय व्यापार-- प्रिय व्यापार व्यक्तिगत एव प्रनु-पादित होने ई वरच्‌ भ्रानन्दानुभूति प्रदान करते है । इसके दिपरोतत कार्यानुभव का स्पष्ट भ्राग्रह्‌ उत्पादन परही दोना) (४) कार्यानुभव तथा समाजतेवा-- समाज सेवा से स्थानीय सस्था, समुदाय की सेवा हो सकती है भ्रौर उनके व्यय में बचत की जा सफती है । वार्यानुमवं मे मी समाज मेवा की स्थाई प्रवृत्ति सी जा सकती है। कार्यानुभव का भूल उईश्य शािक है । चिखिष्टलाप्य - (१) कार्यानुमव उत्पादन की वैज्ञानिक दिधि सीसना है । (२) बार्यानुमव में सुल भाग्रह उत्पादन पर होता है 1 (३) कार्यानुमव मे णारीरि श्रम एवं स्वावलम्दन ध्रावस्यक होता है । (४) कार्यातुमव में स्वय प्रेरणा होती है । (५) कार्यानुमव मे कमारो श्ौर सीसी वाली मादनः वर्णतः प्रिलक्षित होती है। (६) कार्यानुमव पुरोगामी है । (७) मे शिरा बा प्रस्तरण भ्रग माना है । परिच्ीस्नासे- (१) लिका पड़ी श्रादि कायं नार्यानुमव बे नदीं भराति है । (२) कार्यानुमव स्वेच्छानुसार लादता नही बाहिषु ।




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