गीतालोचन | Geetalochan

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Geetalochan by स्वामी दिगम्बर - Swami Digambar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीतारौचन ११ चह समय था गया है। सीता उस 'रस्तेपर मदुप्यवो छे जाना चाहती है जिससे अपने अनेक व्यवददारांपर जरा अंकुश रहे और वदमाशीका प्रमाण कुछ कम दा । दान करनेवाले पर उस दानका विनियोग केला दाता हैं इसकी ज्चावदारी हैं। अतिथी धर्ममें घिवेक चाहिये 1 धर्माचरणमें विषयक चाहिये। सब कर्मेमिं चिचेक चाहिये । गीताका फटाक्ष इस विेकपर दै। गीता संन्यास बताती नहीं | गीता कर्म भी नहीं घताती । गीता सिप भक्ति या चैराग्य दी नहीं घताती ।. गीता इन सबमें जिवेक यताती है। फर्माकर्म का माइनादा चताती है। पक प्रकार का श्ञानयाग बताती है। दरेक चीजका तारतम्य बताती ईै। चाहे चद्द तास्तम्य धर्म दा या यि च्ययदास्मे हा । भ क ६ मास्तीय युद्धका मू राजघुय यक्ष है । ओर रज. सूय यक्षके अद्र पकट हुआ पांडवीय भव टौ सीमाफा परमश्च चिदु था। साथ साय उस वैभव विलासे दुयो- धनादिककि अदर पकः मदान देपायि प्रज्यलित हुआ । चास्तविक चद्द द्वेपासि पदिलेसे हिं था पर इस रालसय यश के निमित्तते वह अधिकतर प्रज्यखिति हुआ | हिमायमें पैदा हुआ पांड राजाकी सतती -पांडव-के साथ कौरव भक दीनताकी द्रष्टिसि देखते थे। कौरप उन पडवेंको पांइकों रख संतती नहीं मानते थे, भतः उनके




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