भारत का व्यापारिक इतिहास | Bharat Ka Vyaparik Itihas

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Bharat Ka Vyaparik Itihas by मोहनलाल बड़जातिया - Mohanlala Badjatiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश कोका निकेदक- ाज हम बड़ी प्रसस्नताके साथ इस दददू और भव्य भन्थकों लेकर पाठकोंकी सेवामें उपस्थित होते हैं। और इस झुभ कार्ययके सफऊता पूर्वक सम्पादन होनेके उपलबमें हार्दिक बधाई देते हैं । ` आजसे ठीक नौमास पूवे -जिख समय हम छोगोकि हृदयम इत महत्‌ कस्पनाङ्ञा जन्म हु था, हमारे पास इस कार्य्यकी पूर्तिके कोई साधन न थे । न पैसा था, न मैटर था और न कोई दूसरे साघन । हमने अपनी इस करपनाकों सुब्यवस्थित रूपसे एक कागजपर छपाकर करीब १२०० बड़े २ व्यापारियोंकी सेवामें इतर बातका अनुमान करनेके लिए भेजा कि इसमें व्यापागी-- समुदाय कितना उत्सादद प्रदार्शित करता है। मगर इन बारह सो पत्रोमेते हमारे पास पूरे धार पत्नोंका उत्तर भी नहीं आया । यही एर बात हमलोर्गोो निराश करनेके छिए पर्याप्र थी । मगर फिर भी इमलोगोंने अपने प्रयत्न को नहीं छोड़ा, और निश्चित किया कि तमाम प्रतिषथ्ठि व्यापारियोंके घर २ घूमऊर उनका परिचय और फोटो इकट्टें किये जांय, और किपी प्रसार इत हत्‌ मन्थो अव्य निकाठा जाय । उससमय दमलोगोंने हिसाब ठगाकर देख लिया कि इस मददत्‌ कार्य्यको सम्पत्न करनेके लिये सफर-खर्च समेत कमसे कम बीस हजार भर अधिकसे अधिक पीस दजार रुपयेकी आवश्यकता है। मगर उस समय तो हमारे पाल पूरे पश्चोत रुपये भी न थे। थां केवर, अपना साहस, आत्म विश्वास, आर व्यापारियों द्वारा उत्साह-प्रदान की मशाका स्रा ! हमारा अरमण इसी महत्‌ आशाके बरपर केषल १७) सत्तरद रुपयेकी पूजीको लेकर दमलोगोंने अपनी यात्ना प्रारम्भ की । सबसे पहले दमछोग अपने चिर परिचित इन्दौर शसम गये । काय्यं - का बिछकुछ प्रारम्म था, व्यापारियोंकों आकषिंत करनेकी कोई सामप्री पास न थी--ऐसी स्थितम कार्य्यो चालू करनेमें कितनी कठिनाई पडती दे इसका अनुमान केवर भुक्त मोगी ही कर सकते हैं--भाठ दिनतक लगातार धूमे रहनेपर भी हमे सफ़उताङ्ा कोई निह दृष्टिगोचर नहीं हुआ । खर्चमें केवल तीन रुपये बच गये थे और वह समय दिखलाद देने खग गया था जिसमे हमारी सब आाशाउॉपर पानी फिरकर यह कल्पना गर्म दीमें नष्ट हो जाती । मगर इसी समय इन्दौरके प्रसिद्ध सेठ सर हुझुमचन्दुजीके पुत्र कुंवर द्ीराठाउजी-उजिनका नाम इस प्रन्थके




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