धर्मचिन्तामणि | Dharmchintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ ७ 1
खौ रासचन्द्रे जौ मदाराज कै सैको देखिये कि जव
शी सद्ाराजाधिराज दशरयजी ने यौवराज्य -देने को
बुलाया तव, श्रौर जब बन मेँ जाने को कदा, तब, दीनो
सुख भौर दुःख के समय, एक समान उन का मुख कमल
विकसित रा । दशरथ जौ का वचन ई--
“शाद् तस्याभिषेकाय विख्टस्य वनाय चं ।
न मया लक्षितस्तस्य खल्पोऽप्याकार--विध्रमः ॥५
षसो प्रकार मनुष्य को उचित 'है कि सदा सुख और दुःख '
के समय ससान रहे । धर्मावतार ली युचधिषिर जौ सदाराज
कौ रोर देखने शे यद प्रत्यच्च विदित दोता दकि उन्दने
कॉवल चै को के बल से अपने दुःखसय वनवासससय को
सुख से काटा और श्रन्त भ चक्रवर्तीं राजा इये । किसौ कार्य
में घबड़ाना कायर पुरुष का लचयण है। सुख दुःख तो
संसार के.धर्म हैं। इस कारण सदा सै धार कर्मा
मुरुबा्थ है । राजा नल को भी अनेक प्रकार कै वाट सने
पड़ चे । परन्तु उन्हों ने थी केवल थेय को के बल से सब
को सानन्द सह किया । पेय कौ परौक्षा आपत्काल दो में
ोती है। गोसाई' तुलसी दास जौ ने भी लिखा है:
पीर धर्म मित्र शरू नारी ।
श्ापत्काल परस्िये 'वारी ॥”
इसी का एक द्र सन्तोष सी है। सन्तोषरूपी भ्रखत से
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