जीवन सौरभ | Jeevan Saurabh

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Jeevan Saurabh  by मनोहर - Manohar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दीर्घायुका प्रशस्त मार्ग नियमित जीवनी कौन कटे ! र्दा ऐसे छोगोंका वहुमत है जो खूब खाने और आनन्द उड़ानेमें ही अपने जीवनकी सफलता समभते हैं चहां खुख कैसे मिडेगा। ऐशो आराम- को मानव जीवनका उद्य सम्रभना तो उन घोड़ोंका जीवन है जो केवछ इसीलिये खूब खिलाये-पिलाये जाते हैं 'कि उनके द्वारा घदर्शन हो । मजुष्य जीवन भी यदि अच्छा खाना, अच्छा पहनना तथा शरीरकों अप्राछतिक कर्मों हाया क्षीण करना हो तो फिर दीर्घायु और स्वस्थ जीवन कैसे मिरेगा 1 आज हम अपने जीचनका प्रत्येक कार्य प्रकृति चिरुद्ध कर रहे हैं। कोई भी कार्य ऐसा न रहा जिससे मानव घर्मकी रक्षा होती हो । दीर्घायुकी घ्रात्तिके लिये स्वेप्रथम आवश्यकता यह है कि दम अपना जीचन भाचारयुक्त और नियमित बनायें और श्रकृतिके चनाये नियमोंके अनुसार अपना प्रत्येक कायं वनाये । भोजने सात्विकता नीं, सुबरी सदवासमें प्रकृति श्र्मेका पालन नहीं, वचनम सत्यता भौर दूढ़ता नहीं, समयका.अपन्यय, कारवार सत्य ओर ईमानदारी नहीं; . विचा्येम अश्छीखता, स्नी जातिक्ा अनादर, निषदे श्य कीर्यपात, सन्तानको उत्तम वनानेकी चेष्ठा नहीं । ये खव अत्पायुका प्रकोप




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