प्रकृत और उनका साहित्य | Prakrat Aur Unka Sahitya

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Prakrat Aur Unka Sahitya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाकृत भाषा ९७ शन्य प्रदिर्तन--सभी चलती भापाश्रो में श्रनेक ध्वनि-परिवर्तन होते रहते द] प्राकृत में भी स्वर-मक्ति, व्यत्यय, श्रक्तर-लोप, श्रक्षतागम श्राटि के श्रतिरिक्त श्रनियमित '्वनियों के उटाइरण पर्याप्त संख्या में मिलते हैं, जैसे बरस (सं० वर्ष), हरिस ( स० दृप ), इल्ुश्र ( सं० लघुकः, हि इलका ), वाणारसी (स० वरुणा-श्त्ति), सत्तर ( स० सप्तति), सबस (सं ० दृ), एगावर्ण ( एकपंप्वाशत्‌ ), इत्यी (स० स्त्री), घर ( सं० गद्द छुद्दा (स० सुधा), एएगारस ( एकादश ) श्रादि में | प्राकृत ने इस प्रकार ध्वनियों का जो सस्लीकरण क्या उससे जर्दो भाषा को श्रनेक लाभ हुए, वहाँ एक बडा भारी दोप यह उपस्थित हो गया कि कई शब्द घिस-पिटक्र एकरूप हो गए. | इससे उनके टीक-टीफ श्र्य को समभने में डी कठिनाई होने लगी । सस्कत के तत्सम शर्व्दो को पुनर्जीवित करने का एक यह भी कारण श्रवश्य रहा होगा । संस्कृत के शक्त, सक्त, सतव सत्र, सप्त, शप्त, फी जगद्‌ प्राबरृत सत्तः श्ररस्य, श्रय, श्राव; श्रय, श्रास्य को जगद्‌ केवले श्रस्ज; श्रय, श्रटन; श्रघप्‌ 3 शरदस्‌ , श्रध श्रत्‌ फो जग एफ श्र, नाग, नाट, न्याय, नाक (स्वग); ज्ञात की जगद केवल णाय रद्द गया । ऊुछ शब्दों फा रूप इतना सुम घे गवा कि वे प्रयोग के लिए श्रशक्त शरीर हीन दो गए--3उ (सं°्श्रत), श्रद्‌ (स० ग्रति); इर्‌ (सण इति), श्रउश्र (खण रयु); श्रवद्‌ (स प्रत्नी), श्राइ (सर प्रादि, श्रानि), उश्रश्र (० उदक), उद्र ( संर उदित, उानत )} मादि | व्याङख--प्राक्त मापा के व्याक्स्ण मैं भी सरलता श्रा गई। 'प्राधुनिक भारताय श्राव भाषाधो की. शदुत-सी प्रदृत्तियाँ प्राकृत से श्रद्‌ ४। माजत में सन्धि के नियम शियिल हो गए. । खव पदे वेकलिपियः आर फिर पद शवस्थाद्ों में श्रनावश्यक मानी गर । दोइ इद, एव तु समा एगे, दे ये चुद ध्रणाणुय, चमाथ श्रवयासों '्रादि के थील में स्प सान्थ नहीं टुई | स्पदन-र्सन्ध पा प्रात से प्रश्न दी नहीं उदवा, कयेंगकि भ न ब्पजनास्त शब्दों का श्रमाव हो गया । हलन्त संन नसम स कार्मल




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