नारी अब्भिव्यक्ति और विवेक | Nari Abhivyakti Aur Vivak

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Nari Abhivyakti Aur Vivak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) भारत का एक गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी पत्नी का मान करता है । उससे डरता भी है । उसके सामने किसी प्रकार के दुराचरण का साहस नहीं करता । वह उसको यथा शक्ति सम्मान देता है कि उसे कष्ट नहो। वह कुछ झ्च्छा पहन सके । वह॒झच्छी तरहा रह सके । प्रभिप्रायः यह है कि वह नारी के समस्त जीवन का भार अपने ऊपर इसलिये मान कर चलता है कि वह ॒चँवाहिक संस्कार द्वारा उसे प्रदान की गयी है भ्रौर उसके शरीर पर-सम्पूर्ण शरीर पर उसका श्रघिकार है । यदि नारी स्वत॑त्रता पूर्वक जिसका श्राय उच्छ खलता पूर्वक जीना ही समभना चाहिए, जीना पसंन्द करती है तव उसकी गणना वीरांगनाग्रों मतो नहीं अपितु वीरांगनाओओं में ही हो सकती है श्रौर जीवन की सांष्यवेला में उस स्वतंत्रता मयी नारी का क्या होगा, क्या वनेगा, उसका उत्तर संभवतः वतमान साहित्कार न दे सकेगा । श्रलवत्ता भ्रस्पताल की श्रोर संकेत श्रवश्य कर देगा । ऐसे लोग यह कल्पना न जाने क्यों नहीं कर पाते कि उस समय क्या व्यवस्थित समाज देश में रह सकता है श्रौर यदि रह सकता होता तो विवाह संस्कार की श्रावश्यकता ही क्यों अनुभव की गयी । एक समय तो निश्चय ही पथु-प्रया होगी । उसी पथु-प्रथा का श्रवलम्वन करके यूरोप प्रथा जनमी होगी 1 उसे ही कुछ लोग भारत में भी देखना चाहते हैं, ताकि त्याग, तपस्या, परमार्थ और चरित्र जसे पवित्र शब्द जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है और जिनके लिये विदेशी जनता लालायित रहती है । उनका सवेथा लोप हो जाय । वर्तमान में नारी पुरुष की गतिविधियों का साथ न देकर पुर्णत: स्वच्छन्द वन जाय । उस समय पूणं स्वच्छन्द नारी श्रौर पूणं स्व्त॑त्र पुरुष के कारण देश और समाज का क्या रूप होगा । उस समाज में न कोई किसी का पति श्र न कोई किसी की पत्नी, भरिन, माता, भाभी, दादी या नानी होगी । एक मात्र नव यौवना मौर होगी वाद में एक मात्र जीवन भार को ढोने वाली बुदिया । जिस बुढिया ने समाज की रुढियों को, मान्यताओं को झ्रपने यौवन कालम टुकराया होगा भ्रौर जौ श्रपने जीवन के विषाक्त अनुभव यत्रतत्र सुनाती होगी । उसके उस जीवन से समाज का क्या सम्वन्घ होगा ? क्या ~ उस समय का पुरुष समाज उसके उस समय के जीवन से सहानुभ्रुति रख




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