गुसाईं - गुरुबानी | Gusain Gurubani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gusain Gurubani by गोकुलचन्द नारंग - Gokulachand Narang

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गोकुलचन्द नारंग - Gokulachand Narang

Add Infomation AboutGokulachand Narang

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१५५ 3 ५ 11 प्रादि नरजनि जानियो निर्भों तुम निरकारि श्रगिभ श्रगोचरि सुनि रचना राचन हारि » (६ ग्रादि निरजनि हय निरकारा । रहिता सुममाध निग्राय) वपि विस्थारि कौनते विस्थस । उपरिजि तीनि देव अधिकार 1 प्रलिष पृषं॒॑श्रकास वनायो। पोनि यद्धि मिल पीन उप्र +} पौन मध्य॒ जब तेज नवासा) ताते जलि धरि कौनी श्रमाः +; जलि के ऊपरि घरिन बनाई । थ्रासा ससिसा नहा ममाद ॥ घर्मछुजा ते धौल विचा) धरनी यपर रापमहारा ॥! ताका बधन वासवे कीना । पौनि थह्टा दस लारि प्रबीना ॥ जोति प्रकास चंदि रवि तारे । रचना रावी राचनहारे 1! जो जो जीवि जनिम जुणि करिश्ना। सोई सोई नाम ताहे फुनि घरिया ॥। माया मोह पटल जबि कीश्रा । तापरिउरिफक रहो एह जीशा 1! श्रलिप पुषं की धारना क्या कोई सकें विप्यानि | सार्ददास श्रहरि साश्रु हुकम प्रभ सो मति हिदं मान रगि रमि बहु रभे मं सम रंगि रहयों संमाई। जेता ब्भ प्रभ साईदास तेता दीभ्रों बताई 0 २ कौनि वेला कौन बीचारि | रुति थित जुगिल्हा कौन वारि* ॥ नमछत्रि लग्न जोगि वीचारि । जिह सम, होइआ श्रोकारि ॥ १. श्राद सरंजनि जानियो--इस दोहे में बाबा साइंदास जीने पुकः श्रगम्‌ प्रन तत्त्व से जिसे “दि निरजन” कहा है, सूप्दि ब्चसा हुई मानी हु । यहा किस प्रकार बनी श्रागे की पवितयों में इसी का बर्णन है । यहा सूर्टि रब सम्बन्धी सारा पौराणिक वणेन सामने झा जाता है। २ प्रलिष पुषं कौ घारना--यहीं सृष्टि रचना का वणेन समाप्ते है) ३. रमि रोगि बहुरंग मे--प्रमु कौ सवेव्यरापकेता वर्णन ह । ४. कौनि वेला कीन दीचारि--पहा श्रोकार स्वरूप प्रव्यक्त परमार्मा कै भजन होने का वर्णन है। यही बात गुरु नानक देव जी ने रौरास में कट्टी है 1 तुन परिशिष्ट में देखिए 3




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now