हमारे स्वतंत्रता सेनानी | Hamare Swatantrta Senani

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Hamare Swatantrta Senani by बी. आर. शर्मा - B. R. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वामी दयानंद उन्नीसवी शताब्दी में भारत के पुनर्जागरण के लिए जो विविध आंदोलन प्रारंभ हुए, उनमे आयंसमाज का स्थान सर्वोपरि है। इसके संस्थापक स्वामी दयानंद पुनर्जागरण की उस प्रवृत्ति के प्रतिनिधि थे जिसने अपनी प्रेरणा पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से ग्रहण न कर प्राचीन शास्त्रो से प्राप्त की थी । वस्तुतः स्वाधीनता प्राप्ति का राष्ट्रीय भांदोलन शुरू ही एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण से हुआ । भारत मे सदियों के विदेशी शासन के कारण भारतीय संस्कृति और धर्म को बड़ा घवका लगा । सांस्कृतिक मूल्यों की भोजस्विता जाती रही भौर उनका ह्लास होने लगा । लोगों में हीनत्व-भावना बढ़ने लगी । सांस्कृतिक पुनर्जागरण ही इस दुदेशा का उपचार था । राजनैतिक आंदोलन से पहले उसे आना ही था, क्योंकि उसी के आधार पर किसी रमे राजनैतिक आंदोलन की इमारत खड़ी की जा सकती थी, जिसके लिए निष्ठा, साहस तथा आत्मविश्वास कौ आवश्यकता होती टै । इस महान्‌ सास्छृतिक आंदोलन का प्रवर्तन करने वाले नेताओं में स्वामी दयानंद प्रमुख थे । अपने प्रचंड भांदोलन के फलस्वरूप वे एक विवादास्पद व्यक्ति बन गए थे । लोग उन्हें एक महानू समाज सुधारक भौर सांस्कृतिक पुनर्जागरण का पथ प्रदर्शक मानते है । परंतु वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सुब्रधार भी थे, इसे हमे कदापि नही भूलना चाहिए । मपि दयानंद ने अपने प्रमुख ग्रंथ सत्यायं प्रकाशः में जिस प्रकार राजनीति की चर्चा, देश के लिए स्वराज्य, साम्राज्य और अखंड सार्वभीम चन्नवर्ती साम्राज्य को प्रस्तुत किया है, उसे पढ़कर स्तंभित होना पडता है। उनका धर्म कोरा कर्मकांडी संप्रदाय नही था 1 वे राजघमं के उपासक थे । उनका धर्में व्यव्ति केलिए द भौर व्यक्तियों कौ इकाई के बाद जव समष्टि का प्रश्न उपस्थित होता है तब वे उस राजधर्म का प्रतिपादन करते हैं, जिसकी पहली संख्या स्वराज्य है और उससे अगली है अखंड सावंभौम चक्रवर्ती साम्राज्य । उनकी यह कल्पना और भावना उनके समस्त साहित्य और जीवन मे ओत-प्रोत है । साम्रा्यवाद की प्रथम सीढ़ी राष्ट्रवाद है । इसी से ऋषि दयानद ने अपने देश के लिए अखंड सार्व-




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