गांधी शताब्दी स्मारक ग्रन्थ युग पुरुष | Gandhi Shatabdi Smarak Granth Yug Purush
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
239
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साध्य-साधन
इसके साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिए कि गाधीजी
कमें में विश्वास करते .थे श्ौर उनका मत था कि जीवन में निरन्तर
कमं हेमा चाहिए 1 एक ग्रच्छे लक्षय को हम खराव साधनो दवारा नही
प्राप्त कर सकते, साव्य श्रौर साघन को एक दूसरे से पूर्णतया प्रलग
नहीं किया जा सकता । वह् इस कथन से सहमत नही थे कि साध्य
ठीक होना चाहिए, साधन चाहे जो हो । जैसा रि उन्होने स्वयं वहा
है, क्योकि ईश्वर मेरे श्र श्रापके रोम-रोम मे है, श्रत इससे मे
पृथ्वी के समस्त प्राणियो की समानता का सिद्धान्त निकालता है ।
इसलिए वह मनुष्यों के विरुद्ध किए जाने वाले हर भेदभाव के विरुद्ध
थे, चाहे उसका श्राधार नस्ल-सम्बन्धी हो या प्रायिक, सामानिकया
धार्मिक ।
भ्राचायं कृपलानो जिन्हे बापू के निकट सम्पर्क से रहने का
सौभाग्य प्राप्त हुप्षा था, के शब्दो मे गाधीजी का मत था कि 'वर्त॑मान
में एकमात्र मा यह है कि राजनैतिक, सामाजिक तथा श्राधिक जीवन
में तथा व्यक्ति ब्रौर समाज में समन्वय स्थापित किया जाय ।
इसका उपाय गाधघीजी यह बताते हैं कि सामाजिक, श्राधिक श्रौर
राजनीतिक तथा व्यक्तिगत भ्रौर सामूहिक समस्त श्राचरण नैतिकता
के कु वुनियादी सिद्धान्तो पर भ्राघारित होना चाहिए 1 ये सिद्धान्त
उनके मत मे सस्य, ग्रहिसा तथा साधनो कौ शुद्धि का चिचार है ।
इस हप्टि से गाधीजी को सर्वोच्च कोटि का श्रन्तरराष्टरीय नेता
माना जा सकता है । भारत के स्वतन्त्र होने के वाद यदि बह केवल
एक चौथाई सदी झौर जीवित रह जाते, तो मेरा विश्वास है कि
उन्होने श्रन्तररष्टरीय शान्ति श्रौर सदुभावना स्थापित कर लो होती,
जौ कि उन सिद्धान्तो पर श्राधारित होती, जिनकी भलक उनके
जीवन-दर्छेन से मिलती है । भ्रव तक उन्होने सयुक्त राष्ट्र सघ के
रूप को ही वदल दिया होता श्रर स परिवतेन का श्राधार श्रणु-
श्रस्त्रो की विनाशकारी शक्ति नहीं होती, जो कि विश्वशान्तिकी
बुनियादो के लिए ही खतरा वन गई है, वहिंक इसका मार्ग उन
सिद्धान्तो के पूर्णतया ग्रनल्प होता जो सयुक्त राष्ट सघ कौ स्थापना
के श्राघार है । ॥
र माधो शताब्दीस्मारकमग्रथ
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