रत्नावली नाटिका | Ratnavali Natika

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Ratnavali Natika by चुन्नीलाल शुक्ल - Chunnilal Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० रत्नावली-नाटिका का समीक्षातमृक-विक्तएः भ्रनृकरण न करते हए श्रपने पूर्ववर्ती कविकुल गुर्‌ कालिदास कौ रचना दं का श्रनुकरण किया ह, शौर श्रपने नाटकों में भास की दाली ,का भी श्रनुकर क त ॐ मो य करने का प्रयास किया है, हरप॑ के नाटकों में कालिदास केनाटकीय तत्वों भी समत्वित रूप दृष्टिगोचर होता है । यही कारण है कि उन्होंने श्रपने नाठों में कालिदास के समान यथा स्थान नगर वर्णान, प्रासाद एवं घारागृह वर्ण, प्रात्तःकाल, सन्ध्या एवं मध्यान्ह वर्णन, वन, उपवन, झाथ्रम एवं पर्वत तथा युद्धादि वंन आदि वरन श्राकपंक, प्रभावोत्पादक एवं मामिक वंन का सफल चित्र चिथरित किया है । हर्प की रचना, में प्रशाय चित्र एवं युद्धारदिं कें भयावह वणन सफलता के साथ चित्रित किये गये हैँ} उनकी भापा एवं कल्पना वैण्यं चिषयके स्वंथा श्रनृकूल हीह । नायिका सागरिका के चित्र का श्रवलोकन करते ही नायक के हृदय प्रजो प्रभाव श्ंकित हो जता है उसका मार्मिक वंन करते हुए हर्प मे निम्नप्रकार लिखा है कि-- लीलावघरुतषद्मा फययन्ती पक्षपातमधिकं नः! ` मानसमुपेत्ति केयं चि्रगता राजहसीवं ॥ इसी प्रकार युद्ध वर्णन के प्रसंग में युद्ध | के'ब्रनुकूल समास वहुल दघंकाय पदावली का प्रयोग करते हुए लिखा है कि-- श्रस्बन्यस्त चिरस्त्रशस्त्रकषणोच्छतोत्तमाङ्कक्षण वयुढासुकरित्‌ स्वनत्प्रहुरर न्ेद्बिलदह्लिनि । प्राहूयाजिमुखे स कोतसपतिषंद्धः प्रतीपीमव-- न्ने के नैव रूमण्वता शरशतमंत्तौ द्विप्थो- हतः ॥ इसके अतिरिक्त हर्प श्रपनी रचना में भ्रलंकारों का (इलेप, उत्प्रेक्षा, झनुप्रास आदि का) समुचित प्रयोग करते हए रचना को गतिशीलता प्रदान की है कहीं भी उनके ग्रलकार रचना की गविशीलता में वाघक नहीं होते हैं । हब की नाट्‌प कला--यद्यपि हृपं कृत नाटकों की कथा वस्तु मौलिक नहीं है । तथ पि उनके नाटकों पर कालिदास तथा भास के घटना संयोग, वस्तु योजना, एवं भाषा इली का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है । हुप॑ ने प्राचीन केथावस्तु को नाट्कीय परिवेष में परिवर्तित करके रचना सौप्ठ वे एवं गपिशीलतक प्रशंसनीय उदाइरण प्रस्तुत किया है ) परवर्ती कवियों तथा




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